लखनऊ में गोमती नदी के किनारे एक पुरानी, दो-मंज़िला इमारत खामोशी से खड़ी है, जिसका नाम है बिबियापुर कोठी. पहली नज़र में यह आपको शायद उतनी भव्य न लगे, लेकिन इसकी सादगी के पीछे अवध की सल्तनत के सबसे बड़े फैसलों और शाही दावतों की ऐसी कहानियां छिपी हैं, जो किसी को भी हैरान कर दें.इसे बनवाया था नवाब आसफुद्दौला ने और इसका डिज़ाइन तैयार किया था मशहूर फ्रांसीसी इंजीनियर जनरल क्लाड मार्टिन ने, जिन्होंने लखनऊ को कई शानदार इमारतें दी हैं.यूरोपीय मेहमानों का शाही गेस्ट हाउसयह कोठी असल में नवाबों का शाही गेस्ट हाउस थी, जिसे खास तौर पर यूरोपीय मेहमानों और अफसरों की खातिरदारी के लिए बनाया गया था. ज़रा सोचिए, उस दौर में यहां कैसी शानदार दावतें होती होंगी! इसके अंदर बड़े-बड़े कमरे, लकड़ी की शहतीरों वाली ऊंची-ऊंची छतें, घुमावदार सीढ़ियां और खूबसूरत नीली-सफ़ेद यूरोपीय टाइलों से सजे फर्श थे, जो आज भी इसकी शान की गवाही देते हैं. यह वो जगह थी, जहाँ नवाब अपने विदेशी मेहमानों पर अवध की मेहमाननवाज़ी की छाप छोड़ते थे.जब दावतगाह बन गई 'किंगमेकर'लेकिन इस कोठी की असली कहानी दावतों से कहीं ज़्यादा गहरी है. इसकी दीवारें सिर्फ हंसी-ठहाकों की नहीं, बल्कि सल्तनत के एक बहुत बड़े राजनीतिक फैसले की भी गवाह हैं.साल 1797 में, जब नवाब आसफुद्दौला का इंतकाल हुआ, तो इसी कोठी में एक दरबार लगाया गया. यहीं पर ब्रिटिश अफसर सर जॉन शोर ने सआदत अली खां को अवध का अगला नवाब घोषित किया. सोचिए, एक गेस्ट हाउस में यह तय हो रहा था कि अवध का अगला बादशाह कौन होगा. एक ही पल में यह कोठी दावतगाह से 'किंगमेकर' बन गई.जब मेहमान ही बन बैठे मालिकवक्त बदला और 1856 में अवध पर अंग्रेजों का पूरी तरह से कब्ज़ा हो गया. और विडंबना देखिए, जो कोठी कभी अंग्रेजों के शाही स्वागत के लिए बनाई गई थी, अब वो उनके अपने मनोरंजन और पार्टियों का अड्डा बन गई. ब्रिटिश फौजी अफसर यहां अपने उत्सव और कार्यक्रम करने लगे.आज बिबियापुर कोठी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में एक संरक्षित स्मारक है. यह अब भी उतनी ही शांत है, लेकिन इसकी खामोशी में अवध की शाही दावतों, राजनीतिक साजिशों और बदलते हुए वक्त की अनगिनत कहानियां दफन हैं.
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