आज जिस संस्थान को हम IIT रुड़की के नाम से जानते हैं, उसकी नींव भव्य इमारतों और बड़े-बड़े क्लासरूम में नहीं, बल्कि एक साधारण से टेंट में रखी गई थी। कल्पना कीजिए, साल 1847 का था, देश पर ब्रिटिश हुकूमत थी और उस वक्त सिर्फ 20 छात्रों के एक छोटे से समूह के साथ भारत के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज ने अपनी यात्रा शुरू की थी।
इसकी शुरुआत के पीछे एक बहुत बड़ी वजह थी— विशाल ‘गंग नहर’ का निर्माण। उस समय के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जेम्स थॉमसन को इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए कुशल भारतीय इंजीनियरों की जरूरत महसूस हुई। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग’ की स्थापना की। यह सिर्फ एक कॉलेज नहीं था, बल्कि भारत में तकनीकी शिक्षा के एक नए युग का सूत्रपात था।
इस कॉलेज का सफर इसके नाम की तरह ही बदलता और बढ़ता गया। अपने संस्थापक सर जेम्स थॉमसन को सम्मान देने के लिए 1854 में इसका नाम ‘थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग’ कर दिया गया। आज़ादी के बाद, 1949 में इसे स्वतंत्र भारत के पहले इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और यह ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रुड़की’ बन गया।
इस संस्थान के गौरवशाली इतिहास का सबसे बड़ा मील का पत्थर साल 2001 में आया, जब इसे देश के सातवें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के रूप में मान्यता दी गई। एक टेंट से शुरू हुआ यह छोटा सा कॉलेज आज IIT रुड़की के रूप में दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है। यह कहानी सिर्फ एक कॉलेज की नहीं, बल्कि भारत के दृढ़ संकल्प, विकास और ज्ञान की अटूट विरासत की है, जो आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित कर रही है।
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