मॉस्को: अमेरिका ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिसपर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का पहला बयान आ गया है। डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों को रूसी राष्ट्रपति ने मास्को पर दबाव बनाने की एक कोशिश बताते हुए कसम खाई कि रूस बाहरी मांगों के आगे नहीं झुकेगा। व्लादिमीर पुतिन ने कहा, "कोई भी स्वाभिमानी देश दबाव में आकर कभी कुछ नहीं करता।"
अमेरिका के रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध के बाद अब भारत पर रूस की नजरें हैं। भारत के लिए अब रूसी तेल खरीदना आसान नहीं होने वाला है। भारत की तेल कंपनियां, रूस की इन्हीं दोनों तेल कंपनियों से ज्यादा तेल खरीदती हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि प्रतिबंध लगाने का मकसद रूस को तेल बेचने से होने वाले राजस्व को रोकना है। वाइट हाउस ने दावा किया है कि चीन के बाद भारत ने भी रूसी तेल खरीदना कम कर दिया है। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि भारत धीरे धीरे अमेरिकी प्रतिबंध से बचने के लिए रूसी तेल खरीदना कम कर सकता है।
पुतिन ने दी थी डोनाल्ड ट्रंप को चेतावनी
व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चेतावनी दी थी कि ये प्रतिबंध वैश्विक ऊर्जा बाजारों को अस्थिर कर सकते हैं और कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि "हमने स्पष्ट रूप से कहा था कि इसका असर अमेरिका सहित वैश्विक तेल कीमतों पर पड़ेगा।" माना जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध में अभी भी शांति समझौता नहीं होने से डोनाल्ड ट्रंप अब बेचैन हो गये हैं, क्योंकि उन्होंने वाइट हाउस आने पर 24 घंटे में ही युद्ध खत्म करने की घोषणा की थी। लेकिन युद्ध अभी भी जारी है। उन्होंने युद्ध खत्म करने को लेकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन से पिछले दिनों अलास्का में भी बैठक की थी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला।
अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों ने बार-बार रूस से युद्धविराम करने को कहा है और इन देशों ने रूस पर कई तरह के सख्ततम प्रतिबंध लगाए हैं। जबकि, व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिम पर प्रतिबंधों और कीव को हथियारों के समर्थन के माध्यम से रूस की संप्रभुता को "कमजोर" करने का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ अमेरिकी वित्त विभाग ने कहा कि ये प्रतिबंध "रूस की आक्रामकता को वित्तपोषित करने की क्षमता को सीमित करने" के प्रयासों का हिस्सा हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे "क्रेमलिन की युद्ध छेड़ने की क्षमता कमजोर होगी।" हालांकि, रूसी विदेश मंत्रालय ने इस फैसले को "पूरी तरह से प्रतिकूल" बताते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि इससे रूसी अर्थव्यवस्था के लिए "कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होगी"।
अमेरिका के रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध के बाद अब भारत पर रूस की नजरें हैं। भारत के लिए अब रूसी तेल खरीदना आसान नहीं होने वाला है। भारत की तेल कंपनियां, रूस की इन्हीं दोनों तेल कंपनियों से ज्यादा तेल खरीदती हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि प्रतिबंध लगाने का मकसद रूस को तेल बेचने से होने वाले राजस्व को रोकना है। वाइट हाउस ने दावा किया है कि चीन के बाद भारत ने भी रूसी तेल खरीदना कम कर दिया है। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि भारत धीरे धीरे अमेरिकी प्रतिबंध से बचने के लिए रूसी तेल खरीदना कम कर सकता है।
पुतिन ने दी थी डोनाल्ड ट्रंप को चेतावनी
व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चेतावनी दी थी कि ये प्रतिबंध वैश्विक ऊर्जा बाजारों को अस्थिर कर सकते हैं और कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि "हमने स्पष्ट रूप से कहा था कि इसका असर अमेरिका सहित वैश्विक तेल कीमतों पर पड़ेगा।" माना जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध में अभी भी शांति समझौता नहीं होने से डोनाल्ड ट्रंप अब बेचैन हो गये हैं, क्योंकि उन्होंने वाइट हाउस आने पर 24 घंटे में ही युद्ध खत्म करने की घोषणा की थी। लेकिन युद्ध अभी भी जारी है। उन्होंने युद्ध खत्म करने को लेकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन से पिछले दिनों अलास्का में भी बैठक की थी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला।
अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों ने बार-बार रूस से युद्धविराम करने को कहा है और इन देशों ने रूस पर कई तरह के सख्ततम प्रतिबंध लगाए हैं। जबकि, व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिम पर प्रतिबंधों और कीव को हथियारों के समर्थन के माध्यम से रूस की संप्रभुता को "कमजोर" करने का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ अमेरिकी वित्त विभाग ने कहा कि ये प्रतिबंध "रूस की आक्रामकता को वित्तपोषित करने की क्षमता को सीमित करने" के प्रयासों का हिस्सा हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे "क्रेमलिन की युद्ध छेड़ने की क्षमता कमजोर होगी।" हालांकि, रूसी विदेश मंत्रालय ने इस फैसले को "पूरी तरह से प्रतिकूल" बताते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि इससे रूसी अर्थव्यवस्था के लिए "कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होगी"।
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