नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय बाजार में चल रही उथल-पुथल ने भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। एक तरफ, रूस समेत ओपेक+ देशों की ओर से कच्चे तेल के उत्पादन पर 'पॉज' (रोक) लगाए जाने से तेल की कीमतों में उछाल का डर है। वहीं, दूसरी ओर ग्लोबल मंदी के डर और फेडरल रिजर्व के मौद्रिक फैसलों के कारण सोने-चांदी जैसी सुरक्षित संपत्तियों में नई तेजी की भविष्यवाणी होने लगी है। इससे देश का आयात बिल बेतहाशा बढ़ सकता है। कारण है कि तेल के साथ सोने-चांदी का भारत बहुत बड़ा उपभोक्ता है। इससे 2026 की शुरुआत में भारत महंगाई भड़क सकती है। यह 'डबल अटैक' भारतीय नीति निर्माताओं और आम जनता दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
ऑस्ट्रेलिया-ट्रेडिंग.कॉम के सीईओ पीटर मैकगवायर ने कहा है कि ग्लोबल कमोडिटी बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर जारी रहेगा। इसकी वजह ओपेक+ का उत्पादन बढ़ोतरी रोकना और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति है, जो निवेशकों को चिंतित कर रही है। फेड की ब्याज दरें कम होने पर 2026 की शुरुआत में सोने और चांदी की कीमतें बढ़ सकती हैं।
ओपेक+ देशों के फैसले से कैसे होगा असर?
ओपेक+ ने दिसंबर में उत्पादन टारगेट थोड़ा बढ़ाकर बाजारों को चौंका दिया था। लेकिन, 2026 की पहली तिमाही में यह समूह सावधानी बरतेगा। दूसरी तिमाही तक, समूह कीमतों को स्थिर रखने और बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के बीच संतुलन बनाते हुए उत्पादन को लेकर नए फैसले ले सकता है। वैश्विक मांग, अमेरिकी डॉलर की चाल और टैरिफ (आयात शुल्क) से जुड़े घटनाक्रम तेल की कीमतों को प्रभावित करने वाले मुख्य फैक्टर बने रहेंगे।
भारत के लिए ओपेक+ देशों की ओर से उत्पादन पर 'पॉज' कई तरह से महत्वपूर्ण है। ओपेक+ प्रमुख तेल उत्पादक देशों का समूह है। इसमें रूस, सऊदी अरब समेत 22 देश शामिल हैं। इसका तेल उत्पादन को बढ़ाने की योजना पर रोक लगा देना या उसे सीमित कर देना सीधे तौर पर भारत पर असर डालेगा। इससे वैश्विक बाजार में तेल की सप्लाई सीमित रहने के आसार हैं। इससे कीमतें ऊंची बनी रहेंगी या अचानक बढ़ भी सकती हैं।
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। ऊंची तेल कीमतें होने पर आयात बिल बहुत अधिक बढ़ जाएगा। इससे देश का व्यापार घाटा भी बढ़ेगा। साथ ही भारतीय रुपया कमजोर होगा। यह महंगाई को हवा दे सकता है। कारण है कि इससे पेट्रोल, डीजल और दूसरे पेट्रोलियम उत्पादों के महंगे होने की आशंका है।
सोने-चांदी की कीमतों में तेजी की आशंका
वहीं, दूसरी तरफ वैश्विक मंदी की आशंकाएं बढ़ गई हैं। जब आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है तो निवेशक सोने और चांदी जैसी सुरक्षित संपत्तियों की ओर रुख करते हैं। इससे उनकी मांग और कीमतें तेजी से बढ़ती हैं। तेल की ही तरह भारत दुनिया में सोने के सबसे बड़े आयातकों में है। ऊंची कीमतें होने पर आयात बिल पर फिर से दबाव बढ़ेगा। घरेलू बाजार में महंगाई और बढ़ने की आशंका है। इससे आम आदमी की खरीदने की ताकत घट जाएगी।
ऑस्ट्रेलिया-ट्रेडिंग.कॉम के सीईओ पीटर मैकगवायर ने कहा है कि ग्लोबल कमोडिटी बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर जारी रहेगा। इसकी वजह ओपेक+ का उत्पादन बढ़ोतरी रोकना और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति है, जो निवेशकों को चिंतित कर रही है। फेड की ब्याज दरें कम होने पर 2026 की शुरुआत में सोने और चांदी की कीमतें बढ़ सकती हैं।
ओपेक+ देशों के फैसले से कैसे होगा असर?
ओपेक+ ने दिसंबर में उत्पादन टारगेट थोड़ा बढ़ाकर बाजारों को चौंका दिया था। लेकिन, 2026 की पहली तिमाही में यह समूह सावधानी बरतेगा। दूसरी तिमाही तक, समूह कीमतों को स्थिर रखने और बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के बीच संतुलन बनाते हुए उत्पादन को लेकर नए फैसले ले सकता है। वैश्विक मांग, अमेरिकी डॉलर की चाल और टैरिफ (आयात शुल्क) से जुड़े घटनाक्रम तेल की कीमतों को प्रभावित करने वाले मुख्य फैक्टर बने रहेंगे।
भारत के लिए ओपेक+ देशों की ओर से उत्पादन पर 'पॉज' कई तरह से महत्वपूर्ण है। ओपेक+ प्रमुख तेल उत्पादक देशों का समूह है। इसमें रूस, सऊदी अरब समेत 22 देश शामिल हैं। इसका तेल उत्पादन को बढ़ाने की योजना पर रोक लगा देना या उसे सीमित कर देना सीधे तौर पर भारत पर असर डालेगा। इससे वैश्विक बाजार में तेल की सप्लाई सीमित रहने के आसार हैं। इससे कीमतें ऊंची बनी रहेंगी या अचानक बढ़ भी सकती हैं।
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। ऊंची तेल कीमतें होने पर आयात बिल बहुत अधिक बढ़ जाएगा। इससे देश का व्यापार घाटा भी बढ़ेगा। साथ ही भारतीय रुपया कमजोर होगा। यह महंगाई को हवा दे सकता है। कारण है कि इससे पेट्रोल, डीजल और दूसरे पेट्रोलियम उत्पादों के महंगे होने की आशंका है।
सोने-चांदी की कीमतों में तेजी की आशंका
वहीं, दूसरी तरफ वैश्विक मंदी की आशंकाएं बढ़ गई हैं। जब आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है तो निवेशक सोने और चांदी जैसी सुरक्षित संपत्तियों की ओर रुख करते हैं। इससे उनकी मांग और कीमतें तेजी से बढ़ती हैं। तेल की ही तरह भारत दुनिया में सोने के सबसे बड़े आयातकों में है। ऊंची कीमतें होने पर आयात बिल पर फिर से दबाव बढ़ेगा। घरेलू बाजार में महंगाई और बढ़ने की आशंका है। इससे आम आदमी की खरीदने की ताकत घट जाएगी।
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