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इंदिरा गांधी के बेटे हुए थे नाराज तो चली गई थी बिहार के इस सीएम की कुर्सी, जानिए '14 परसेंट' वाला किस्सा

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पटना: 1980 के दशक में एक पूर्व मुख्यमंत्री ने टिप्पणी थी, बिहार की नब्ज पर सिर्फ दो लोग पकड़ रखते हैं, एक हैं कर्पूरी ठाकुर और दूसरे हैं जगन्नाथ मिश्र। जगन्नाथ मिश्र अप्रैल 1975 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद वे कांग्रेस की राजनीति की धुरी बन गये। वे मुख्यमंत्री रहें या नहीं रहें, शक्ति संतुलन हमेशा उनकी तरफ झुका रहा। लेकिन पार्टी में इतनी पकड़ रखने के बाद भी वे अपनी शक्ति के लिए आलाकमान (इंदिरा गांधी) की कृपा पर निर्भर थे। 1980 में कांग्रेस की वापसी पर इंदिरा गांधी ने उन्हें फिर बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था। उस समय कांग्रेस में इंदिरा गांधी को खुश करने के लिए चाटुकारिता एक सामान्य प्रवृति बन गयी थी। संजय गांधी के निधन के बाद 1981 में राजीव गांधी राजनीति में आ चुके थे। वे बड़े राजनीतिक फैसलों में भूमिका निभाने लगे थे। राजीव गांधी को शुरू में खुशामदी लोग पसंद नहीं थे। भ्रष्टाचार के भी सख्त खिलाफ थे। जगन्नाथ मिश्र की कार्यशैली राजीव गांधी को पसंद नहीं थी। जो जगन्नाथ मिश्र इंदिरा गांधी के प्रियपात्र थे उन्हें राजीव गांधी की नाराजगी के कारण अगस्त 1983 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।





आखिर राजीव गांधी क्यों खफा हुए जगन्नाथ मिश्र से?

जगन्नाथ मिश्र जब 1980 में मुख्यमंत्री बने तो धीरे-धीरे शासन पर उनका ऐसा दबदबा बढ़ा कि विरोध में कोई चूं भी नहीं बोल सकता था। जो चाहा वो फैसला लिया। खुद को शक्तिमान समझने की भूल कर बैठे। 26 जुलाई को विधानसभा में जगन्नाथ मिश्र ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे केन्द्रीय नेतृत्व बेहद नाराज हो गया। उन्होंने सदन में कहा, बिहार देश के खनिज का 40 फीसदी उत्पादन करता है लेकिन अर्जित रॉयल्टी का केवल '14 परसेंट' हिस्सा ही मिलता है। मैं केन्द्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि इस नीति में बदलाव किया जाए। केन्द्र बिहार के खनिज उत्पादों का खरीदार है, ये ठीक नहीं कि उपभोक्ता ही रॉयल्टी की दरें तय करें। यह कथन केन्द्र को खुला चैलेंज था। जो कांग्रेस पार्टी केवल चापलूसी पसंद करती थी,. उसे भला इतनी बड़ी चुनौती कैसे बर्दाश्त होती। जगन्नाथ मिश्र राजीव गांधी की नजरों में चढ़ गये।





एलपी शाही के विद्रोह ने पासा पलट दिया

जगन्नाथ मिश्र ने खुद को स्थापित करने के लिए पार्टी के भूमिहार और राजपूत गुटों को नजरअंदाज कर दिया था। ये उनकी बड़ी भूल थी। फरवरी 1983 में मुख्यमंत्री मिश्र ने 11 मंत्रियों को उनके पद से हटा दिया था। इनमें भूमिहार जाति से आने वाले ललितेश्वर प्रसाद शाही भी थे। वे कृषि मंत्री थे। उन्होंने जगन्नाथ मिश्र के खिलाफ विद्रोह कर दिया। शाही ने दिल्ली में कैंप कर मिश्र विरोधी अभियान को हवा दी। केन्द्रीय नेताओं को मुख्यमंत्री के गलत फैसलों की जानकारी दी। शाही ने जगन्नाथ मिश्र को तब बड़ा झटका दिया जब उन्होंने श्यामसुंदर सिंह धीरज (भूमिहार) को युवा कांग्रेस आई का बिहार अध्यक्ष बनवा दिया। उस समय ललितेश्वर प्रसाद शाही को तारिक अनवर और राजीव गांधी का समर्थन हासिल था। धीरज का आना, जगन्नाथ मिश्र की शक्ति को चुनौती थी क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उन्होंने धीरज को उप मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया था।

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स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले छोड़नी पड़ी कुर्सी

9 अगस्त 1983 को सात विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को हटाने के लिए बंद का आयोजन किया था। एलपी शाही और अन्य विक्षुब्धों के लिए यह एक मौका था कि वे मिश्र सरकार की खामियों को आलाकमान के पास पहुंचा सकें। कांग्रेस आई के 60 विक्षुब्ध विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल कर मिश्र हटाओ अभियान शुरू कर दिया। जगन्नाथ मिश्र को दिल्ली बुलाया गया। श्रीमती गांधी के साथ बैठक में राजीव गांधी भी थे। बातचीत में मुख्यमंत्री को कुछ नहीं बताया गया। जगन्नाथ मिश्र दिल्ली से आये तो वे बाबा भोलेनाथ की पूजा करने देवघर चले गये। उन्हें लगा कि अभयदान मिल गया है। लेकिन अचानक उन्हें दिल्ली से पद छोड़ने का फरमान मिल गया। हर कोई केन्द्र के इस फैसले पर हैरान रह गया। कहा जाता है कि राजीव गांधी के सुझाव पर जगन्नाथ मिश्र की छुट्टी की गयी थी। इतना ही नहीं केन्द्रीय नेतृत्व ने यह भी इंतजाम कर दिया था कि डॉ मिश्र अपनी पसंद के किसी विधायक को मुख्यमंत्री नहीं बना सकें। स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त 1983 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तब बिहार विधान परिषद के सदस्य चंद्रशेखर सिंह को नया मुख्यमंत्री बनाया गया था।





जब जगन्नाथ मिश्र को इंदिरा गांधी ने झिड़का

एक बार इंदिरा गांधी, जगन्नाथ मिश्र के खुशामदी रवैये से बेहद नाराज हो गयी थीं और सार्वजनिक रूप से डांट भी दिया था। मौका था 1982 में महात्मा गांधी सेतु के उद्घाटन का। 2 मार्च 1982 को जब इंदिरा गांधी पटना हवाई अड्डे पर उतरीं तो वहां अनियंत्रित भीड़ को देख कर परेशान हो गईं। प्रशंसकों की भारी भीड़ के बीच किसी तरह प्रधानमंत्री गांधी को निकाल गया। इससे असहज श्रीमती गांधी ने जगन्नाथ मिश्र से थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, क्या तमाशा है ये सब? फिर वे तेजी से हेलीकॉप्टर में सवार हो कर पुल के उद्घाटन स्थल के लिए रवाना हो गयीं। उस समय पटना में गंगा नदी पर बने महात्मा गांधी सेतु की लंबाई चर्चा का विषय थी।





अधूरे पुल के उद्घाटन से नाराज थीं इंदिरा गांधी

जब इंदिरा गांधी वहां पहुंची तो देखा कि पुल अभी तक पूरी तरह से बना नहीं है। इससे वे और नाराज हो गयीं कि एक अधूरे पुल के उद्घाटन के लिए उन्हें बुला लिया गया। उनकी नाराजगी जायज थी क्योंकि 10 साल बाद भी पुल तैयार नहीं हुआ था। विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा बना लिया। इन्होंने अधूरे पुल के उद्घाटन को तमाशा करार दिया। जगन्नाथ मिश्र एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर थे। आरोप लगा कि इस कार्यक्रम पर राज्य सरकार ने करीब एक करोड़ रुपये खर्च किये हैं। 250 सरकारी बसों से लोगों को इस समारोह में लाया गया। कांग्रेस आई ने आठ विशेष रेलगाडियां किराये पर ली थीं। गाड़ियों को रखने और लोगों के जमा होने के लिए करीब 50 एकड़ में लगी गेंहूं की अधपकी बालियों को काट दिया गया था। इसके लिए करीब 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया गया। इस तरह जगन्नाथ मिश्र और इंदिरा गांधी दोनों विवादों में घिर गये थे।

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