गाजियाबाद: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी थोक दवा मंडी नई बस्ती में सोमवार और मंगलवार को पुलिस एवं औषधि विभाग की संयुक्त कार्रवाई ने पूरे दवा कारोबार में हड़कंप मचा दिया। कार्रवाई के दौरान करोड़ों रुपये के कफ सीरप की खेप बरामद की गई, जिसे बांग्लादेश और शराबबंदी वाले राज्यों में तस्करी के लिए भेजा जा रहा था। चार ट्रकों में चूने की बोरियों में छिपाकर माल को रखा गया था। मामले में पुलिस ने इस गिरोह के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया है, जबकि इसके तीन मुख्य सरगना अब भी फरार हैं।
3 करोड़ से अधिक का माल जब्तगाजियाबाद पुलिस ने छापेमारी के दौरान 15,73,500 शीशियां कफ सीरप की बरामद कीं, जिनकी कीमत करीब 3 करोड़ 40 लाख रुपये बताई जा रही है। साथ ही, 20 लाख रुपये नकद, दो बड़े ट्रक, दो छोटे ट्रक, एक क्रेटा कार, दो लैपटॉप, 10 मोबाइल फोन, 10 फर्जी सिम कार्ड, मोहर और दस्तावेज भी जब्त किए गए।
आरोपी गिरफ्तार, सरगना फरारपुलिस ने इस मामले में सौरव त्यागी, शादाब, शिवकांत, संतोष भड़ाना, अंबुज कुमार, धर्मेंद्र, दीपू यादव और सुशील यादव को गिरफ्तार किया है। मुख्य सरगना मेरठ निवासी आसिफ, वसीम, और वाराणसी के शुभम जायसवाल फरार हैं। पुलिस का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद इस तस्करी नेटवर्क के और भी परतें खुल सकती हैं।
फार्मा लाइसेंस के नाम पर धंधागिरफ्तार सौरव त्यागी नई बस्ती की दवा मंडी में करीब 30 वर्षों से कारोबार कर रहा था और उसके पास आरएस फार्म फार्म, इंदिरापुरम के नाम से एक वैध फार्मा लाइसेंस था। इसी लाइसेंस का इस्तेमाल वह हिमाचल प्रदेश के पोंटा साहिब और बद्दी स्थित कंपनियों से कफ सीरप ESKUF और PHENSEDYL खरीदने के लिए करता था।
इन दवाओं की फर्जी बिक्री दिखाकर वह उन्हें जमा करता और बाद में तस्करी के जरिए बाहर भेज देता था। पुलिस ने पाया कि उसने फर्जी नाम-पते से कई दवा फर्मों का पंजीकरण भी कराया था।
औषधि विभाग पर उठे सवालपुलिस को शक है कि औषधि विभाग के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से ही फर्जी ड्रग लाइसेंस जारी किए गए। इस पहलू की भी जांच की जा रही है।
केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट फेडरेशन, यूपी के प्रदेश महासचिव सुरेश गुप्ता ने कहा कि संगठन पहले भी सरकार से कफ सीरप तस्करी पर सख्त कार्रवाई की मांग कर चुका है, क्योंकि इससे युवाओं का भविष्य खतरे में पड़ता है।
बांग्लादेश तक फैला नेटवर्कजांच में खुलासा हुआ है कि यह गिरोह कफ सीरप की तस्करी दो तरीकों से करता था। पहले बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में सीरप पहुंचाया जाता, जहां इसे खाली कर ड्रमों में भरकर कोडीन निकाली जाती थी। कोडीन को आगे कोकीन के रूप में बेचा जाता था। कई बार सीधे बांग्लादेश तक माल भेज दिया जाता था। बांग्लादेश में शराब पर पाबंदी होने के कारण वहां नशे के लिए कफ सीरप का इस्तेमाल आम है।
सोनभद्र से मिली थी सूचनागाजियाबाद पुलिस को इस बड़े नेटवर्क की जानकारी सोनभद्र पुलिस से मिली थी। सोनभद्र में पहले भी चावल की बोरियों में छिपाकर भेजे जा रहे कफ सीरप के जखीरे पकड़े गए थे। उसी कड़ी में गाजियाबाद में छापेमारी कर यह कार्रवाई की गई। सौरव त्यागी दवा व्यापारियों के एक संगठन से भी जुड़ा हुआ था। मामले के खुलासे के बाद संगठन ने उसे निष्कासित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
पुलिस का कहना है कि फरार सरगनों की गिरफ्तारी के बाद इस पूरे अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय तस्करी नेटवर्क की जड़ें उजागर हो सकेंगी। फिलहाल, सभी गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जारी है। औषधि विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर भी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
3 करोड़ से अधिक का माल जब्तगाजियाबाद पुलिस ने छापेमारी के दौरान 15,73,500 शीशियां कफ सीरप की बरामद कीं, जिनकी कीमत करीब 3 करोड़ 40 लाख रुपये बताई जा रही है। साथ ही, 20 लाख रुपये नकद, दो बड़े ट्रक, दो छोटे ट्रक, एक क्रेटा कार, दो लैपटॉप, 10 मोबाइल फोन, 10 फर्जी सिम कार्ड, मोहर और दस्तावेज भी जब्त किए गए।
आरोपी गिरफ्तार, सरगना फरारपुलिस ने इस मामले में सौरव त्यागी, शादाब, शिवकांत, संतोष भड़ाना, अंबुज कुमार, धर्मेंद्र, दीपू यादव और सुशील यादव को गिरफ्तार किया है। मुख्य सरगना मेरठ निवासी आसिफ, वसीम, और वाराणसी के शुभम जायसवाल फरार हैं। पुलिस का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद इस तस्करी नेटवर्क के और भी परतें खुल सकती हैं।
फार्मा लाइसेंस के नाम पर धंधागिरफ्तार सौरव त्यागी नई बस्ती की दवा मंडी में करीब 30 वर्षों से कारोबार कर रहा था और उसके पास आरएस फार्म फार्म, इंदिरापुरम के नाम से एक वैध फार्मा लाइसेंस था। इसी लाइसेंस का इस्तेमाल वह हिमाचल प्रदेश के पोंटा साहिब और बद्दी स्थित कंपनियों से कफ सीरप ESKUF और PHENSEDYL खरीदने के लिए करता था।
इन दवाओं की फर्जी बिक्री दिखाकर वह उन्हें जमा करता और बाद में तस्करी के जरिए बाहर भेज देता था। पुलिस ने पाया कि उसने फर्जी नाम-पते से कई दवा फर्मों का पंजीकरण भी कराया था।
औषधि विभाग पर उठे सवालपुलिस को शक है कि औषधि विभाग के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से ही फर्जी ड्रग लाइसेंस जारी किए गए। इस पहलू की भी जांच की जा रही है।
केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट फेडरेशन, यूपी के प्रदेश महासचिव सुरेश गुप्ता ने कहा कि संगठन पहले भी सरकार से कफ सीरप तस्करी पर सख्त कार्रवाई की मांग कर चुका है, क्योंकि इससे युवाओं का भविष्य खतरे में पड़ता है।
बांग्लादेश तक फैला नेटवर्कजांच में खुलासा हुआ है कि यह गिरोह कफ सीरप की तस्करी दो तरीकों से करता था। पहले बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में सीरप पहुंचाया जाता, जहां इसे खाली कर ड्रमों में भरकर कोडीन निकाली जाती थी। कोडीन को आगे कोकीन के रूप में बेचा जाता था। कई बार सीधे बांग्लादेश तक माल भेज दिया जाता था। बांग्लादेश में शराब पर पाबंदी होने के कारण वहां नशे के लिए कफ सीरप का इस्तेमाल आम है।
सोनभद्र से मिली थी सूचनागाजियाबाद पुलिस को इस बड़े नेटवर्क की जानकारी सोनभद्र पुलिस से मिली थी। सोनभद्र में पहले भी चावल की बोरियों में छिपाकर भेजे जा रहे कफ सीरप के जखीरे पकड़े गए थे। उसी कड़ी में गाजियाबाद में छापेमारी कर यह कार्रवाई की गई। सौरव त्यागी दवा व्यापारियों के एक संगठन से भी जुड़ा हुआ था। मामले के खुलासे के बाद संगठन ने उसे निष्कासित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
पुलिस का कहना है कि फरार सरगनों की गिरफ्तारी के बाद इस पूरे अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय तस्करी नेटवर्क की जड़ें उजागर हो सकेंगी। फिलहाल, सभी गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जारी है। औषधि विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर भी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
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