लेखक: मधुरेन्द्र सिन्हा
पश्चिम एशिया में फिलहाल शांति है। अमेरिका ने इस्राइल और ईरान के बीच सीजफायर करा दिया। यह खबर पूरी दुनिया के लिए राहत लेकर आई, खासकर यह देखते हुए कि ईरान ने जवाबी कार्रवाई में Strait of Hormuz को बंद करने की बात कही थी। उसकी चेतावनी से भारत समेत कई देशों में चिंता थी। इस्राइल-ईरान टकराव के दौरान इंटरनैशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में 7% से भी ज्यादा का उछाल आ गया था। सीजफायर की घोषणा के बाद ही कच्चे तेल के दाम में कमी आई है।
क्या है होर्मुज: 'स्ट्रेट' का अर्थ होता है समुद्र में एक संकरा मार्ग, कुछ-कुछ नहर जैसा। Strait of Hormuz फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है और यह कच्चे तेल के ट्रांसपोर्टेशन का बेहद अहम रास्ता है। इसकी अधिकतम चौड़ाई करीब 34 किलोमीटर है, लेकिन इसके किनारे छिछले हैं। इसलिए बड़े जहाज केवल बीच के गहरे हिस्से से ही गुजर सकते हैं। इस जलमार्ग के एक ओर ओमान और संयुक्त अरब अमीरात हैं, तो दूसरी ओर ईरान। कहने को तो यह अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग है, लेकिन समय-समय पर ईरान इसे बंद करने की धमकी देता रहा है। ऐसा करने की उसकी क्षमता पर सवाल नहीं है, क्योंकि इस मार्ग के उत्तरी तट पर उसकी फौजें पहले से तैनात हैं।
अहम तेल मार्ग: दुनिया का 20 से 30% कच्चा तेल और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस इसी रास्ते से गुजरते हैं। यही कारण है कि जिन देशों की ऊर्जा आपूर्ति इस रास्ते पर निर्भर है - जैसे चीन, जापान और भारत, उनके लिए यह जलमार्ग बेहद संवेदनशील है। भारत अपनी जरूरत का 80% से भी ज्यादा तेल और कतर से आने वाली गैस इसी रास्ते से आयात करता है। लेकिन, जिन देशों का तेल इस रास्ते से नहीं आता, वे भी परेशान हो जाते हैं क्योंकि इस मार्ग पर संकट आते ही क्रूड ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमत बढ़ने लगती है। हमने पहले देखा है कि कैसे हूती लड़ाकों ने इस्राइल से जुड़े जहाजों पर मिसाइलें दागकर बाजार को हिला दिया था।
भारत का घाटा: ईरान से भारत तेल खरीदने की योजना बना रहा था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तेहरान का दौरा भी किया था, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत को कदम पीछे खींचने पड़े। अब जबकि इस्राइल-ईरान के बीच संघर्षविराम हो चुका है तो शायद ऐसी कोशिश भारत फिर से शुरू करे।
चीन का फायदा: ईरान साल 2018-19 तक भारत का कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था। उस साल भारत ने ईरान से करीब 12.1 अरब डॉलर का तेल आयात किया था। लेकिन, उसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। भारत को इन प्रतिबंधों से राहत मिली थी, लेकिन डॉलर में भुगतान की व्यवस्था न हो पाने के कारण ईरान से तेल का आयात घटता गया। इसका फायदा चीन ने उठाया। आज उसकी कुल जरूरतों का करीब 10% तेल ईरान से ही आता है।
पश्चिम एशिया पर नजर: भारत ने हाल के वर्षों में रूस से बड़े पैमाने पर सस्ता कच्चा तेल खरीदा, लेकिन अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही। ऐसे में भारत एक बार फिर पश्चिम एशिया से खरीद बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। अप्रैल 2025 तक भारत को तेल आपूर्ति करने वाले देशों में रूस पहले, इराक दूसरे और सऊदी अरब तीसरे स्थान पर था। अमेरिका इस सूची में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। वह भारत के कुल आयात का 7.3% सप्लाई करता है।
भविष्य की तैयारी: भारत ने रणनीति के तहत विभिन्न देशों से संतुलित ढंग से तेल खरीद जारी रखी है। इससे जनता को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में स्थिरता का लाभ मिला। फिलहाल पश्चिम एशिया में शांति है, लेकिन यहां स्थायी शांति की जरूरत है। वहीं, सरकार को भविष्य की किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अपने रणनीतिक तेल भंडार और वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तैयारी मजबूत करनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
पश्चिम एशिया में फिलहाल शांति है। अमेरिका ने इस्राइल और ईरान के बीच सीजफायर करा दिया। यह खबर पूरी दुनिया के लिए राहत लेकर आई, खासकर यह देखते हुए कि ईरान ने जवाबी कार्रवाई में Strait of Hormuz को बंद करने की बात कही थी। उसकी चेतावनी से भारत समेत कई देशों में चिंता थी। इस्राइल-ईरान टकराव के दौरान इंटरनैशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में 7% से भी ज्यादा का उछाल आ गया था। सीजफायर की घोषणा के बाद ही कच्चे तेल के दाम में कमी आई है।
क्या है होर्मुज: 'स्ट्रेट' का अर्थ होता है समुद्र में एक संकरा मार्ग, कुछ-कुछ नहर जैसा। Strait of Hormuz फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है और यह कच्चे तेल के ट्रांसपोर्टेशन का बेहद अहम रास्ता है। इसकी अधिकतम चौड़ाई करीब 34 किलोमीटर है, लेकिन इसके किनारे छिछले हैं। इसलिए बड़े जहाज केवल बीच के गहरे हिस्से से ही गुजर सकते हैं। इस जलमार्ग के एक ओर ओमान और संयुक्त अरब अमीरात हैं, तो दूसरी ओर ईरान। कहने को तो यह अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग है, लेकिन समय-समय पर ईरान इसे बंद करने की धमकी देता रहा है। ऐसा करने की उसकी क्षमता पर सवाल नहीं है, क्योंकि इस मार्ग के उत्तरी तट पर उसकी फौजें पहले से तैनात हैं।
अहम तेल मार्ग: दुनिया का 20 से 30% कच्चा तेल और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस इसी रास्ते से गुजरते हैं। यही कारण है कि जिन देशों की ऊर्जा आपूर्ति इस रास्ते पर निर्भर है - जैसे चीन, जापान और भारत, उनके लिए यह जलमार्ग बेहद संवेदनशील है। भारत अपनी जरूरत का 80% से भी ज्यादा तेल और कतर से आने वाली गैस इसी रास्ते से आयात करता है। लेकिन, जिन देशों का तेल इस रास्ते से नहीं आता, वे भी परेशान हो जाते हैं क्योंकि इस मार्ग पर संकट आते ही क्रूड ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमत बढ़ने लगती है। हमने पहले देखा है कि कैसे हूती लड़ाकों ने इस्राइल से जुड़े जहाजों पर मिसाइलें दागकर बाजार को हिला दिया था।
भारत का घाटा: ईरान से भारत तेल खरीदने की योजना बना रहा था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तेहरान का दौरा भी किया था, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत को कदम पीछे खींचने पड़े। अब जबकि इस्राइल-ईरान के बीच संघर्षविराम हो चुका है तो शायद ऐसी कोशिश भारत फिर से शुरू करे।
चीन का फायदा: ईरान साल 2018-19 तक भारत का कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था। उस साल भारत ने ईरान से करीब 12.1 अरब डॉलर का तेल आयात किया था। लेकिन, उसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। भारत को इन प्रतिबंधों से राहत मिली थी, लेकिन डॉलर में भुगतान की व्यवस्था न हो पाने के कारण ईरान से तेल का आयात घटता गया। इसका फायदा चीन ने उठाया। आज उसकी कुल जरूरतों का करीब 10% तेल ईरान से ही आता है।
पश्चिम एशिया पर नजर: भारत ने हाल के वर्षों में रूस से बड़े पैमाने पर सस्ता कच्चा तेल खरीदा, लेकिन अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही। ऐसे में भारत एक बार फिर पश्चिम एशिया से खरीद बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। अप्रैल 2025 तक भारत को तेल आपूर्ति करने वाले देशों में रूस पहले, इराक दूसरे और सऊदी अरब तीसरे स्थान पर था। अमेरिका इस सूची में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। वह भारत के कुल आयात का 7.3% सप्लाई करता है।
भविष्य की तैयारी: भारत ने रणनीति के तहत विभिन्न देशों से संतुलित ढंग से तेल खरीद जारी रखी है। इससे जनता को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में स्थिरता का लाभ मिला। फिलहाल पश्चिम एशिया में शांति है, लेकिन यहां स्थायी शांति की जरूरत है। वहीं, सरकार को भविष्य की किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अपने रणनीतिक तेल भंडार और वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तैयारी मजबूत करनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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