नई दिल्ली: दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन की ओर से आए बयान पर विवाद हो गया है। सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) के प्रेसिडेंट पेनपा त्सेरिंग सिक्योंग ने चीन के धार्मिक मामलों पर दावे पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि चीन को यह तय करने का कोई हक नहीं है कि अगला दलाई लामा कौन होगा। त्सेरिंग ने चीन के 'गोल्डन अर्न' प्रक्रिया का पालन करने की बात पर कहा, 'यह चीनी सरकार को तय करना है कि क्या वह सरकार जो धर्म में विश्वास नहीं करती, तिब्बती लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना चाहती है; न केवल हमारे देश पर कब्जा करना चाहती है, बल्कि हम पर बहुत सी चीजें थोपना चाहती है, जिसमें हमारे अपने आध्यात्मिक नेता को चुनने की धार्मिक स्वतंत्रता भी शामिल है।' इसका मतलब है कि चीन, जो खुद को धर्म से दूर बताता है, वो तिब्बतियों को उनके धर्मगुरु चुनने के तरीके पर हुक्म चलाना चाहता है।
गोल्डन अर्न वाली चीनी दलील की हवा निकली
एक दिन पहले ही भारत ने भी साफ किया है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, यह दलाई लामा और तिब्बितयों के पारंपरिक रिवाजों से ही तय होगा। नपा त्सेरिंग सिक्योंग ने आगे कहा, 'इसलिए, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, और चीनी सरकार हमेशा कुछ न कुछ कहती रहती है। वे कह रहे हैं कि हमने परंपरा तोड़ी है। चीनी सरकार किस परंपरा की बात कर रही है? गोल्डन अर्न (स्वर्ण कलश)? यह तो 1793 में शुरू हुआ था, 18वीं सदी के अंत में। उससे पहले 8 दलाई लामा हो चुके हैं। क्या वे दलाई लामा नहीं हैं, क्योंकि वहां गोल्डन अर्न नहीं था?' त्सेरिंग का कहना है कि चीन जिस परंपरा की बात कर रहा है, वो तो बहुत बाद में शुरू हुई। उससे पहले भी तो दलाई लामा हुए हैं।
भारत ने भी चीन को कह दिया है, दखल न दे
निर्वासित तिब्बती प्रशासन की यह प्रतिक्रिया अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगले दलाई लामा का चुनाव केवल वर्तमान दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म की धार्मिक परंपराओं के अनुसार ही होगा। रिजिजू ने कहा, 'दलाई लामा बौद्धों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और परिभाषित संस्था हैं। और जो लोग दलाई लामा का अनुसरण करते हैं, वे महसूस करते हैं कि अवतार स्थापित परंपरा और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार तय किया जाना है। उनके अलावा किसी और को यह तय करने का अधिकार नहीं है और न ही मौजूदा परंपराओं को।' रिजिजू ने साफ कहा कि दलाई लामा ही यह तय करेंगे कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। इसमें किसी और का दखल नहीं चलेगा।
दलाई लामा पहले ही जता चुके हैं अपनी इच्छा
यह दलाई लामा के अपनी उत्तराधिकार योजना के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने के बाद किसी वरिष्ठ मंत्री की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया थी। इससे पहले, दलाई लामा ने कहा था कि उन्होंने एक गैर-लाभकारी संस्था, गादेन फोडरंग ट्रस्ट बनाई है। यही संस्था उनके अगले अवतार को पहचानने का काम करेगी। इस हफ्ते की शुरुआत में, चीन ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता की योजना को खारिज कर दिया था। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दोहराया कि चयन को बीजिंग द्वारा अनुमोदित प्रक्रिया के माध्यम से ही जाना चाहिए। माओ ने बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'दलाई लामा का पुनर्जन्म घरेलू मान्यता के सिद्धांतों, 'गोल्डन अर्न' प्रक्रिया और धार्मिक परंपराओं और कानूनों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन का पालन करना चाहिए।' चीन चाहता है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव उनकी सरकार की निगरानी में हो।
क्या है गोल्डन अर्न या स्वर्ण कलश वाली परंपरा?
'गोल्डन अर्न' या स्वर्ण कलशप्रणाली, जिसे चीन उच्च पद के तिब्बती लामाओं को चुनने के लिए एक पारंपरिक विधि बताता है, को 1793 में किंग राजवंश के दौरान पेश किया गया था। चीन का कहना है कि यह तरीका सदियों से चला आ रहा है। कुल मिलाकर, मामला यह है कि दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी खुद चुनना चाहते हैं, जबकि चीन चाहता है कि यह चुनाव उसकी निगरानी में हो। तिब्बत की निर्वासित सरकार का भी कहना है कि चीन को धार्मिक मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं है। अब देखना यह है कि आगे क्या होता है। यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कई देश दलाई लामा का समर्थन कर रहे हैं और चीन से धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपील कर रहे हैं।
गोल्डन अर्न वाली चीनी दलील की हवा निकली
एक दिन पहले ही भारत ने भी साफ किया है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, यह दलाई लामा और तिब्बितयों के पारंपरिक रिवाजों से ही तय होगा। नपा त्सेरिंग सिक्योंग ने आगे कहा, 'इसलिए, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, और चीनी सरकार हमेशा कुछ न कुछ कहती रहती है। वे कह रहे हैं कि हमने परंपरा तोड़ी है। चीनी सरकार किस परंपरा की बात कर रही है? गोल्डन अर्न (स्वर्ण कलश)? यह तो 1793 में शुरू हुआ था, 18वीं सदी के अंत में। उससे पहले 8 दलाई लामा हो चुके हैं। क्या वे दलाई लामा नहीं हैं, क्योंकि वहां गोल्डन अर्न नहीं था?' त्सेरिंग का कहना है कि चीन जिस परंपरा की बात कर रहा है, वो तो बहुत बाद में शुरू हुई। उससे पहले भी तो दलाई लामा हुए हैं।
#WATCH | Dharamshala, Himachal Pradesh: On China's statement on the successor of Dalai Lama, Penpa Tsering Sikyong, President of the Central Tibetan Administration, says, "...That's for the Chinese Government to decide whether that Government does not believe in religion wants to… pic.twitter.com/iyZXgvGYZ1
— ANI (@ANI) July 4, 2025
भारत ने भी चीन को कह दिया है, दखल न दे
निर्वासित तिब्बती प्रशासन की यह प्रतिक्रिया अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगले दलाई लामा का चुनाव केवल वर्तमान दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म की धार्मिक परंपराओं के अनुसार ही होगा। रिजिजू ने कहा, 'दलाई लामा बौद्धों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और परिभाषित संस्था हैं। और जो लोग दलाई लामा का अनुसरण करते हैं, वे महसूस करते हैं कि अवतार स्थापित परंपरा और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार तय किया जाना है। उनके अलावा किसी और को यह तय करने का अधिकार नहीं है और न ही मौजूदा परंपराओं को।' रिजिजू ने साफ कहा कि दलाई लामा ही यह तय करेंगे कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। इसमें किसी और का दखल नहीं चलेगा।
दलाई लामा पहले ही जता चुके हैं अपनी इच्छा
यह दलाई लामा के अपनी उत्तराधिकार योजना के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने के बाद किसी वरिष्ठ मंत्री की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया थी। इससे पहले, दलाई लामा ने कहा था कि उन्होंने एक गैर-लाभकारी संस्था, गादेन फोडरंग ट्रस्ट बनाई है। यही संस्था उनके अगले अवतार को पहचानने का काम करेगी। इस हफ्ते की शुरुआत में, चीन ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता की योजना को खारिज कर दिया था। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दोहराया कि चयन को बीजिंग द्वारा अनुमोदित प्रक्रिया के माध्यम से ही जाना चाहिए। माओ ने बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'दलाई लामा का पुनर्जन्म घरेलू मान्यता के सिद्धांतों, 'गोल्डन अर्न' प्रक्रिया और धार्मिक परंपराओं और कानूनों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन का पालन करना चाहिए।' चीन चाहता है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव उनकी सरकार की निगरानी में हो।
क्या है गोल्डन अर्न या स्वर्ण कलश वाली परंपरा?
'गोल्डन अर्न' या स्वर्ण कलशप्रणाली, जिसे चीन उच्च पद के तिब्बती लामाओं को चुनने के लिए एक पारंपरिक विधि बताता है, को 1793 में किंग राजवंश के दौरान पेश किया गया था। चीन का कहना है कि यह तरीका सदियों से चला आ रहा है। कुल मिलाकर, मामला यह है कि दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी खुद चुनना चाहते हैं, जबकि चीन चाहता है कि यह चुनाव उसकी निगरानी में हो। तिब्बत की निर्वासित सरकार का भी कहना है कि चीन को धार्मिक मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं है। अब देखना यह है कि आगे क्या होता है। यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कई देश दलाई लामा का समर्थन कर रहे हैं और चीन से धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपील कर रहे हैं।
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