नई दिल्ली: दिल्ली के स्कूली बच्चों में बढ़ते मोटापे, फास्ट फूड की आदत और घटती शारीरिक गतिविधियों का असर अब सीधे उनके स्वास्थ्य पर दिखने लगा है। कोरोना के बाद बच्चों और किशोरों में कार्डियो-मेटाबोलिक का जोखिम भी बढ़ा है। खासकर खानपान की क्वॉलिटी और फूड सेफ्टी में आई गिरावट ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।
हाल ही में एम्स द्वारा 5 स्कूलों में 6 से 19 साल की उम्र के 3,888 बच्चों पर किए गए अध्ययन में यह सामने आया कि कार्डियो-मेटाबोलिक समस्याएं अब बचपन में होने लगी हैं। यह बच्चों के अडल्ट होने पर और गंभीर रूप ले सकती हैं। इस अध्ययन का मकसद बच्चों में छिपे मोटापे (Metabolically Obese Normal Weight) जैसे जोखिम और इसके सामाजिक-आर्थिक अंतर को समझना था। इस अध्ययन में शामिल एक तिहाई बच्चे डिस्लिपिडेमिया (खून में असामान्य मात्रा में लिपिड्स होना) से भी ग्रस्त पाए गए। यही नहीं, 15.02% किशोरों का ब्लड शुगर 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक था। यह डायबिटीज से पहले की स्थिति मानी जाती है।
इस तरह बच्चों पर की गई रिसर्चएम्स के डॉक्टरों ने यह स्टडी दिल्ली के 3 सरकारी और 2 प्राइवेट स्कूल के स्टूडेंट्स पर की। इसमें 1,985 बच्चे स्टूडेंट्स सरकारी और 1,903 प्राइवेट स्कूलों के थे। छोटे बच्चों का शारीरिक चेकअप किया गया, जबकि 10 से 19 साल के किशोरों के ब्लड प्रेशर, ब्लड सैंपल, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज की जांच की गई।
मोटापा निजी स्कूल के बच्चों में ज्यादाअध्ययन में सामने आया कि प्राइवेट स्कूलों के बच्चों में मोटापे और हाई शुगर के मामले ज्यादा हैं। निजी स्कूलों के 24.02% बच्चे अधिक वजन के और 22.70% मोटापे से पीड़ित थे। सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमशः 7.63% और 4.48% था। कमर का मोटापा निजी स्कूलों में 16.77% और सरकारी स्कूलों में 1.83% पाया गया।
हाई ब्लड प्रेशर में दोनों स्कूल एक जैसेसरकारी स्कूलों के 7.44% और निजी स्कूलों के 7.27% किशोरों में हाइपरटेंशन पाया गया। यानी दोनों में लगभग समान स्थिति दिखी।
डॉक्टरों की सलाह: फास्ट फूड छोड़ेंअध्ययन में शामिल डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में इन समस्याओं की वजह उनकी बिगड़ती लाइफस्टाइल है। खराब खाने और फिजिकल एक्टिविटी की कमी के कारण ये समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉक्टरों ने सलाह दी है कि बच्चों के खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्हें रोजाना फिजिकल एक्टिविटी करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
हाल ही में एम्स द्वारा 5 स्कूलों में 6 से 19 साल की उम्र के 3,888 बच्चों पर किए गए अध्ययन में यह सामने आया कि कार्डियो-मेटाबोलिक समस्याएं अब बचपन में होने लगी हैं। यह बच्चों के अडल्ट होने पर और गंभीर रूप ले सकती हैं। इस अध्ययन का मकसद बच्चों में छिपे मोटापे (Metabolically Obese Normal Weight) जैसे जोखिम और इसके सामाजिक-आर्थिक अंतर को समझना था। इस अध्ययन में शामिल एक तिहाई बच्चे डिस्लिपिडेमिया (खून में असामान्य मात्रा में लिपिड्स होना) से भी ग्रस्त पाए गए। यही नहीं, 15.02% किशोरों का ब्लड शुगर 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक था। यह डायबिटीज से पहले की स्थिति मानी जाती है।
इस तरह बच्चों पर की गई रिसर्चएम्स के डॉक्टरों ने यह स्टडी दिल्ली के 3 सरकारी और 2 प्राइवेट स्कूल के स्टूडेंट्स पर की। इसमें 1,985 बच्चे स्टूडेंट्स सरकारी और 1,903 प्राइवेट स्कूलों के थे। छोटे बच्चों का शारीरिक चेकअप किया गया, जबकि 10 से 19 साल के किशोरों के ब्लड प्रेशर, ब्लड सैंपल, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज की जांच की गई।

मोटापा निजी स्कूल के बच्चों में ज्यादाअध्ययन में सामने आया कि प्राइवेट स्कूलों के बच्चों में मोटापे और हाई शुगर के मामले ज्यादा हैं। निजी स्कूलों के 24.02% बच्चे अधिक वजन के और 22.70% मोटापे से पीड़ित थे। सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमशः 7.63% और 4.48% था। कमर का मोटापा निजी स्कूलों में 16.77% और सरकारी स्कूलों में 1.83% पाया गया।
हाई ब्लड प्रेशर में दोनों स्कूल एक जैसेसरकारी स्कूलों के 7.44% और निजी स्कूलों के 7.27% किशोरों में हाइपरटेंशन पाया गया। यानी दोनों में लगभग समान स्थिति दिखी।
डॉक्टरों की सलाह: फास्ट फूड छोड़ेंअध्ययन में शामिल डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में इन समस्याओं की वजह उनकी बिगड़ती लाइफस्टाइल है। खराब खाने और फिजिकल एक्टिविटी की कमी के कारण ये समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉक्टरों ने सलाह दी है कि बच्चों के खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्हें रोजाना फिजिकल एक्टिविटी करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
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