नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के खिलाफ अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने रूस के दो सबसे बड़े तेल कंपनियों लुकोइल (Lukoil) और रोसनेफ्ट (Rosneft) पर यूक्रेन से जुड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह पहली बार है जब ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में रूस पर सीधे प्रतिबंध लगाए हैं। पहले वे रूस को प्रभावित करने के लिए व्यापार और टैरिफ (आयात शुल्क) पर ज्यादा भरोसा करते थे, लेकिन अब उन्होंने सीधे प्रतिबंधों का रास्ता चुना है। इस कदम से ट्रंप, अमेरिका की आर्थिक ताकत का इस्तेमाल करके रूस के युद्ध के लिए होने वाले खर्च को कम करने और भारत के अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाने की कोशिश को भी प्रभावित कर रहे हैं।
बैन लगाने का क्या है मकसद?अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के अनुसार, इन नए प्रतिबंधों का मकसद रूस के तेल निर्यात से होने वाली कमाई को कम करना है, लेकिन तेल की सप्लाई को पूरी तरह से रोकना नहीं है। यह पहले के जी7 (G7) देशों द्वारा तय की गई कीमत सीमा से अलग है, जिसमें रूसी कच्चे तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से कम पर बेचने की इजाजत थी।
एनर्जी एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन नई पाबंदियों से दुनिया भर में रूसी तेल सप्लाई की चेन और टाइट हो जाएगी। अगेन कैपिटल (Again Capital) के जॉन किल्डाफ (John Kilduff) कहते हैं कि भले ही ओपेक (OPEC), खासकर सऊदी अरब के पास कुछ अतिरिक्त तेल उत्पादन की क्षमता है, लेकिन दुनिया भर में बिना बैन वाले तेल की मांग बढ़ने से कीमतें बढ़ेंगी।
भारत के साथ खोला मोर्चाट्रंप की इस नई ऊर्जा कूटनीति से पता चलता है कि वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बढ़ी हुई निराशा में हैं और यूक्रेन में युद्धविराम के लिए मॉस्को पर दबाव बनाना चाहते हैं। हालांकि रूस के दो सबसे बड़े तेल उत्पादकों पर प्रतिबंध लगाकर ट्रंप ने भारत के साथ अपने व्यापारिक टकराव का एक नया मोर्चा भी खोल दिया है। भारत रूस से तेल खरीदने वाले बड़े देशों में से एक है।
क्या बीच में फंस गया भारत?भारत के लिए ये प्रतिबंध एक नाजुक समय पर आए हैं। यूक्रेन युद्ध साल 2022 में शुरू होने के बाद से भारत रूस से रियायती दर पर मिलने वाले कच्चे तेल का एक बड़ा खरीदार बन गया है। लेकिन अब जब वाशिंगटन ने रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं, तो भारतीय रिफाइनरियों को अपनी तेल खरीद की रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है।
रॉयटर्स के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज रूसी तेल का आयात कम करने या यहां तक कि रोकने की योजना बना रही है। रिलायंस के रोसनेफ्ट से हर दिन लगभग 5 लाख बैरल तेल खरीदने के लंबे समय से अनुबंध हैं, लेकिन नए प्रतिबंधों से इन शिपमेंट में दिक्कतें आने की उम्मीद है। वहीं रोसनेफ्ट के सबसे बड़े शेयरधारक वाली नायरा एनर्जी भी इसी तरह की दुविधा में है। रॉयटर्स ने यह भी बताया कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और भारत पेट्रोलियम जैसी भारतीय सरकारी रिफाइनरियां 21 नवंबर के बाद आने वाले तेल के कार्गो के दस्तावेजों की जांच कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तेल सीधे प्रतिबंधित रूसी कंपनियों से नहीं खरीदा गया है।
यह प्रतिबंध भारत को एक मुश्किल स्थिति में डाल देते हैं। एक तरफ उसे सस्ती ऊर्जा की जरूरत है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को भी बचाना है। यह सब तब हो रहा है जब भारत अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है, ताकि ट्रंप द्वारा लगाए गए 50% आयात शुल्क से बचा जा सके।
व्यापारिक समझौते पर बातचीतब्लूमबर्ग के अनुसार भारत और अमेरिका भारतीय निर्यात पर टैरिफ को लगभग 15-16% तक कम करने के लिए एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन ऊर्जा से जुड़े मतभेदों के कारण प्रगति धीमी रही है। ट्रंप द्वारा बार-बार मोदी के वादों का जिक्र करना, शायद हकीकत बताने से ज्यादा, दुनिया को यह दिखाने के लिए है कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुक रहा है और रूस से दूरी बना रहा है।
बैन लगाने का क्या है मकसद?अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के अनुसार, इन नए प्रतिबंधों का मकसद रूस के तेल निर्यात से होने वाली कमाई को कम करना है, लेकिन तेल की सप्लाई को पूरी तरह से रोकना नहीं है। यह पहले के जी7 (G7) देशों द्वारा तय की गई कीमत सीमा से अलग है, जिसमें रूसी कच्चे तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से कम पर बेचने की इजाजत थी।
एनर्जी एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन नई पाबंदियों से दुनिया भर में रूसी तेल सप्लाई की चेन और टाइट हो जाएगी। अगेन कैपिटल (Again Capital) के जॉन किल्डाफ (John Kilduff) कहते हैं कि भले ही ओपेक (OPEC), खासकर सऊदी अरब के पास कुछ अतिरिक्त तेल उत्पादन की क्षमता है, लेकिन दुनिया भर में बिना बैन वाले तेल की मांग बढ़ने से कीमतें बढ़ेंगी।
भारत के साथ खोला मोर्चाट्रंप की इस नई ऊर्जा कूटनीति से पता चलता है कि वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बढ़ी हुई निराशा में हैं और यूक्रेन में युद्धविराम के लिए मॉस्को पर दबाव बनाना चाहते हैं। हालांकि रूस के दो सबसे बड़े तेल उत्पादकों पर प्रतिबंध लगाकर ट्रंप ने भारत के साथ अपने व्यापारिक टकराव का एक नया मोर्चा भी खोल दिया है। भारत रूस से तेल खरीदने वाले बड़े देशों में से एक है।
क्या बीच में फंस गया भारत?भारत के लिए ये प्रतिबंध एक नाजुक समय पर आए हैं। यूक्रेन युद्ध साल 2022 में शुरू होने के बाद से भारत रूस से रियायती दर पर मिलने वाले कच्चे तेल का एक बड़ा खरीदार बन गया है। लेकिन अब जब वाशिंगटन ने रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं, तो भारतीय रिफाइनरियों को अपनी तेल खरीद की रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है।
रॉयटर्स के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज रूसी तेल का आयात कम करने या यहां तक कि रोकने की योजना बना रही है। रिलायंस के रोसनेफ्ट से हर दिन लगभग 5 लाख बैरल तेल खरीदने के लंबे समय से अनुबंध हैं, लेकिन नए प्रतिबंधों से इन शिपमेंट में दिक्कतें आने की उम्मीद है। वहीं रोसनेफ्ट के सबसे बड़े शेयरधारक वाली नायरा एनर्जी भी इसी तरह की दुविधा में है। रॉयटर्स ने यह भी बताया कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और भारत पेट्रोलियम जैसी भारतीय सरकारी रिफाइनरियां 21 नवंबर के बाद आने वाले तेल के कार्गो के दस्तावेजों की जांच कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तेल सीधे प्रतिबंधित रूसी कंपनियों से नहीं खरीदा गया है।
यह प्रतिबंध भारत को एक मुश्किल स्थिति में डाल देते हैं। एक तरफ उसे सस्ती ऊर्जा की जरूरत है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को भी बचाना है। यह सब तब हो रहा है जब भारत अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है, ताकि ट्रंप द्वारा लगाए गए 50% आयात शुल्क से बचा जा सके।
व्यापारिक समझौते पर बातचीतब्लूमबर्ग के अनुसार भारत और अमेरिका भारतीय निर्यात पर टैरिफ को लगभग 15-16% तक कम करने के लिए एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन ऊर्जा से जुड़े मतभेदों के कारण प्रगति धीमी रही है। ट्रंप द्वारा बार-बार मोदी के वादों का जिक्र करना, शायद हकीकत बताने से ज्यादा, दुनिया को यह दिखाने के लिए है कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुक रहा है और रूस से दूरी बना रहा है।
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