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Success Story: साइकिल पर बेची चाय, ₹1500 की नौकरी... फिर ₹28,000 से ऐसा क्या किया काम कि आज करोड़ों का टर्नओवर?

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​नई दिल्‍ली: तमिलनाडु के छोटे से गांव से निकलकर विजय सुब्रमण्यम ने कारोबार की बुलंदियां छू ली हैं। उनकी कहानी किसी फिल्‍मी स्क्रिप्‍ट से कम नहीं है। अपनी शुरुआती जिंदगी में विजय ने घोर गरीबी और संघर्षों का सामना किया। फिर अपनी मेहनत और लगन से बड़ा कारोबारी साम्राज्‍य खड़ा कर दिया। सिर्फ 28,000 रुपये की छोटी सी पूंजी से उन्‍होंने अपना व्यापार शुरू किया था। आज यह करोड़ों रुपये के विशाल फर्नीचर ब्रांड रॉयलओक फर्नीचर में तब्‍दील हो चुका है। यह कहानी सिर्फ एक कारोबार की कामयाबी की नहीं है। अलबत्‍ता, एक साधारण व्यक्ति के असाधारण दृढ़ संकल्प और दूरदर्शिता की भी है। आइए, यहां विजय सुब्रमण्यम की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।
बचपन से ही देखा संघर्ष image

विजय सुब्रमण्यम की कहानी तमिलनाडु के तंजावुर के पास रंगनाथपुरम गांव से शुरू होती है। उनका बचपन आर्थिक तंगी में बीता। उनके पिता छोटे-मोटे व्यवसाय बदलते रहते थे। मां परिवार का खर्च चलाने के लिए एक छोटी किराने की दुकान चलाती थीं। विजय का स्कूल में दाखिला सात साल की उम्र में हुआ। उनका परिवार केरल के मुन्नार में रहने चला गया था। उन्हें सीधे दूसरी क्लास में दाखिला मिला। केरल में जहां सब मलयालम बोलते थे, वहां तमिल बोलने के कारण उन्हें काफी दिक्कतें आईं। सरकारी छात्रावास में भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जहां सोने के लिए बिस्तर तक नहीं था। इन सभी चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कड़ी मेहनत की और अपनी 12वीं कक्षा पूरी की। यहीं से उनके अंदर कुछ बड़ा करने का जुनून पैदा हुआ।


साइकिल पर बेची चाय पत्ती image

कॉलेज के दिनों से ही विजय ने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी मां से 5,000 रुपये लेकर साइकिल पर चाय की पत्ती बेचने का काम शुरू किया। हफ्ते में दो-तीन दिन कॉलेज जाते। बाकी दिनों में काम करते। 1995 में ग्रेजुएशन के बाद नौकरी की तलाश में वह कोयंबटूर चले गए। वहां उन्हें स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में क्रेडिट कार्ड बेचने का काम मिला। उनकी मासिक सैलरी 1,500 रुपये थी। वह अपने काम में काफी सफल भी रहे। इसी दौरान, उन्हें एक एग्‍जीबिशन में 28,000 रुपये में स्टॉल खरीदने का मौका मिला। इसके लिए उन्होंने अपनी स्कूटर बेच दी। दोस्तों से पैसे लिए। यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।


ऐसे शुरू हुआ पहला स्‍टोर image

प्रदर्शनी में कपड़े और रसोई के सामान बेचने से विजय को अच्‍छा मुनाफा हुआ। इससे उन्होंने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने अपने भाई मथन सुब्रमण्यम के साथ मिलकर अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनियों का आयोजन शुरू किया। उनका ध्यान जल्द ही टीवी स्टैंड पर गया, जिसमें उन्हें अधिक मुनाफा दिखा। 1999 में वह बेंगलुरु गए और वहां फर्नीचर बाजार की संभावना को पहचाना। विजय ने 200 वर्ग फीट की एक छोटी दुकान किराए पर ली। 'फैशन डेकोर' नाम से टीवी स्टैंड बेचना शुरू किया। 2007 में उन्होंने चीन से फर्नीचर इम्‍पोर्ट की शुरुआत की। 2010 में बेंगलुरु के बनसवाड़ी में अपना पहला फ्लैगशिप स्टोर 'रॉयलओक' लॉन्‍च किया।


ऑनलाइन बिक्री से हुआ विस्‍तार image

साल 2020 में जब कोरोना महामारी आई तो बाकी कंपनियां जहां कर्मचारियों की छंटनी कर रही थीं। वहीं, विजय ने ऑनलाइन बिक्री शुरू करने का बड़ा फैसला लिया। इस कदम ने उनकी कंपनी को नई दिशा दी। ऑनलाइन बिक्री से कंपनी के फंड में बढ़ोतरी हुई। महामारी के बाद रॉयलओक ने 50 से ज्‍यादा आउटलेट्स से बढ़कर 100 से अधिक आउटलेट्स खोले। आज कंपनी के 150 से ज्‍यादा रिटेल स्टोर हैं। इनमें से आधे उनके खुद के हैं। बाकी फ्रेंचाइजी मॉडल पर चलते हैं। 2000 से ज्‍यादा कर्मचारियों के साथ यह ब्रांड करोड़ों रुपये का टर्नओवर हासिल कर चुका है। भारत के संगठित फर्नीचर बाजार में यह एक बड़ा नाम है।

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