रश्मि खत्री, ऋषिकेश: योगनगरी ऋषिकेश में बजरंग सेतु का निर्माण कार्य फिलहाल अधूरा है, लेकिन भारत में बन रहे इस पहले कांच के सेतु को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। ऋषिकेश में बजरंग सेतु के निर्माण के साथ एक नए युग की शुरुआत हो रही है।
यह एक आधुनिक सस्पेंशन ब्रिज है, जो इंजीनियरिंग के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अदभुत नमूना है। यह ग्लास वॉकवे लगभग सौ साल पुराने लक्ष्मण झूला की जगह ले रहा है। यह कांच का पुल यहां पर आने वाले लोगों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करेगा। इस पुल के ऊपर गुजरते हुए लोग मां गंगा के दर्शन भी कर सकेंगे।
बता दें कि लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश में पर्यटन और आध्यात्मिक संस्कृति का केंद्र रहा है। 1929 में बना यह लोहे का सस्पेंशन ब्रिज अपने समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रहा है। इस पुल से गंगा नदी के पार तपोवन और जोंक गांवों को जोड़ता था। यह भगवान लक्ष्मण की पौराणिक कहानी का प्रतिनिधित्व करता था। इस पुल के लिए किंवदंती है कि उन्होंने इसी स्थान पर जूट की रस्सी का उपयोग करके नदी पार की थी।
2024 तक पूरा होना था काम
बजरंग पुल को पूरा करने का लक्ष्य वर्ष 2024 तक रखा गया था, लेकिन काम अभी भी अधूरा है। इस वर्ष भी कांवड़ यात्रा के दौरान पुल के पूरा होने की उम्मीद थी, जिससे कि कांवड़ियों के साथ ही यात्रियों को भी इसका लाभ मिलता, लेकिन अभी तक पुल का निर्माण कार्य अधूरा है। 68 करोड़ 86 लाख 20 हजार की लागत से बन रहे 132.30 मीटर स्पान के वैकल्पिक बजरंग सेतु का निर्माण जल्द पूरा होने की उम्मीद है। इसका काफी कार्य पूरा हो चुका है। दोनों ओर सेतु की पेंटिंग का कार्य भी प्रगति पर है। शीघ्र ही यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा। स्थानीय लोगों एवं तीर्थयात्रियों को आवागमन में इसका लाभ प्राप्त होगा।
2019 से लक्ष्मण झूला आवाजाही के लिए बंद है
करीब 92 साल पुराने लक्ष्मण झूला पुल पर सुरक्षा की दृष्टि से 13 जुलाई 2019 को आवाजाही के लिए बंद कर दी गई थी। अब इस पुल के समीप बजरंग सेतु का निर्माण कार्य चल रहा है। लोक निर्माण विभाग नरेंद्रनगर ने वर्ष 2022 में पुल का निर्माण कार्य शुरू किया था। इसे दिसंबर 2024 में पूरा करने का लक्ष्य था। बार-बार पुल निर्माण की समय सीमा बढ़ाई गई।
केंद्रीय सड़क अवसंरचना निधि के तहत बजरंग सेतु का निर्माण कार्य चल रहा है। इस झूला पुल की चौड़ाई आठ मीटर है। साल भर श्रद्धालुओं, पर्यटकों के आवागमन को ध्यान में रखते हुए इस सेतु को डिजाइन किया गया है। पुल पर पैदल यात्रियों के लिए ग्लास डेक बनाया गया है। पुल के बीच में हल्के चौपहिया वाहनों का आवागमन भी प्रस्तावित है।
अभी राम झूला और जानकी सेतु से जाते हैं लोग
लक्ष्मण झूला पुल बंद होने से स्थानीय लोगों और पर्यटकों को राम झूला पुल और जानकी सेतु से आवाजाही करनी पड़ रही है। वर्ष 2023 में टिहरी प्रशासन ने राम झूला पुल पर भी दोपहिया वाहनों की आवाजाही बंद कर दी थी। जिसके बाद से पुल पर केवल पैदल यात्री ही आवागमन कर रहे हैं। बजरंग सेतु बनने से तपोवन से स्थानीय लोगों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को सीधे लक्ष्मण झूला जाने की सुविधा मिलेगी।
पुल की विशेषता
यह पुल 132.5 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा है। इसके बीच में हल्के वाहनों के लिए एक दो तरफा लेन है, जिसकी दोनों ओर मजबूत पारदर्शी शीशे से सुसज्जित पैदल पथ हैं।
पुल के दोनों ओर पैदल पथ 3.5 इंच मोटे मजबूत कांच से बने हैं, जिससे लोगों को नीचे गंगा का नजारा देखने का अवसर मिलेगा। पुल में इस्तेमाल किया गया शीशा बेहद मजबूत है और भारी बारिश, ओलावृष्टि सहित गरम मौसम की स्थिति का सामना कर सकता है। पुल निर्माण में लगाई जा रही सामग्री का गहन परीक्षण किया गया है और इस पुल के कम से कम 150 साल तक चलने की उम्मीद है।
पुल के टावरों को केदारनाथ मंदिर के समान डिजाइन किया गया है, जो संरचना में सांस्कृतिक और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। बजरंग सेतु आधुनिक इंजीनियरिंग और सांस्कृतिक विरासत के मिश्रण का प्रतीक है, जो ऋषिकेश में पर्यटन के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। पुराने लक्ष्मण झूला को एक विरासत स्थल के रूप में संरक्षित करना इस परियोजना में नवाचार और परंपरा के बीच संतुलन को और भी मजबूत करता है।
यह एक आधुनिक सस्पेंशन ब्रिज है, जो इंजीनियरिंग के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अदभुत नमूना है। यह ग्लास वॉकवे लगभग सौ साल पुराने लक्ष्मण झूला की जगह ले रहा है। यह कांच का पुल यहां पर आने वाले लोगों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करेगा। इस पुल के ऊपर गुजरते हुए लोग मां गंगा के दर्शन भी कर सकेंगे।
बता दें कि लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश में पर्यटन और आध्यात्मिक संस्कृति का केंद्र रहा है। 1929 में बना यह लोहे का सस्पेंशन ब्रिज अपने समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रहा है। इस पुल से गंगा नदी के पार तपोवन और जोंक गांवों को जोड़ता था। यह भगवान लक्ष्मण की पौराणिक कहानी का प्रतिनिधित्व करता था। इस पुल के लिए किंवदंती है कि उन्होंने इसी स्थान पर जूट की रस्सी का उपयोग करके नदी पार की थी।
2024 तक पूरा होना था काम
बजरंग पुल को पूरा करने का लक्ष्य वर्ष 2024 तक रखा गया था, लेकिन काम अभी भी अधूरा है। इस वर्ष भी कांवड़ यात्रा के दौरान पुल के पूरा होने की उम्मीद थी, जिससे कि कांवड़ियों के साथ ही यात्रियों को भी इसका लाभ मिलता, लेकिन अभी तक पुल का निर्माण कार्य अधूरा है। 68 करोड़ 86 लाख 20 हजार की लागत से बन रहे 132.30 मीटर स्पान के वैकल्पिक बजरंग सेतु का निर्माण जल्द पूरा होने की उम्मीद है। इसका काफी कार्य पूरा हो चुका है। दोनों ओर सेतु की पेंटिंग का कार्य भी प्रगति पर है। शीघ्र ही यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा। स्थानीय लोगों एवं तीर्थयात्रियों को आवागमन में इसका लाभ प्राप्त होगा।
2019 से लक्ष्मण झूला आवाजाही के लिए बंद है
करीब 92 साल पुराने लक्ष्मण झूला पुल पर सुरक्षा की दृष्टि से 13 जुलाई 2019 को आवाजाही के लिए बंद कर दी गई थी। अब इस पुल के समीप बजरंग सेतु का निर्माण कार्य चल रहा है। लोक निर्माण विभाग नरेंद्रनगर ने वर्ष 2022 में पुल का निर्माण कार्य शुरू किया था। इसे दिसंबर 2024 में पूरा करने का लक्ष्य था। बार-बार पुल निर्माण की समय सीमा बढ़ाई गई।
केंद्रीय सड़क अवसंरचना निधि के तहत बजरंग सेतु का निर्माण कार्य चल रहा है। इस झूला पुल की चौड़ाई आठ मीटर है। साल भर श्रद्धालुओं, पर्यटकों के आवागमन को ध्यान में रखते हुए इस सेतु को डिजाइन किया गया है। पुल पर पैदल यात्रियों के लिए ग्लास डेक बनाया गया है। पुल के बीच में हल्के चौपहिया वाहनों का आवागमन भी प्रस्तावित है।
अभी राम झूला और जानकी सेतु से जाते हैं लोग
लक्ष्मण झूला पुल बंद होने से स्थानीय लोगों और पर्यटकों को राम झूला पुल और जानकी सेतु से आवाजाही करनी पड़ रही है। वर्ष 2023 में टिहरी प्रशासन ने राम झूला पुल पर भी दोपहिया वाहनों की आवाजाही बंद कर दी थी। जिसके बाद से पुल पर केवल पैदल यात्री ही आवागमन कर रहे हैं। बजरंग सेतु बनने से तपोवन से स्थानीय लोगों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को सीधे लक्ष्मण झूला जाने की सुविधा मिलेगी।
पुल की विशेषता
यह पुल 132.5 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा है। इसके बीच में हल्के वाहनों के लिए एक दो तरफा लेन है, जिसकी दोनों ओर मजबूत पारदर्शी शीशे से सुसज्जित पैदल पथ हैं।
पुल के दोनों ओर पैदल पथ 3.5 इंच मोटे मजबूत कांच से बने हैं, जिससे लोगों को नीचे गंगा का नजारा देखने का अवसर मिलेगा। पुल में इस्तेमाल किया गया शीशा बेहद मजबूत है और भारी बारिश, ओलावृष्टि सहित गरम मौसम की स्थिति का सामना कर सकता है। पुल निर्माण में लगाई जा रही सामग्री का गहन परीक्षण किया गया है और इस पुल के कम से कम 150 साल तक चलने की उम्मीद है।
पुल के टावरों को केदारनाथ मंदिर के समान डिजाइन किया गया है, जो संरचना में सांस्कृतिक और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। बजरंग सेतु आधुनिक इंजीनियरिंग और सांस्कृतिक विरासत के मिश्रण का प्रतीक है, जो ऋषिकेश में पर्यटन के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। पुराने लक्ष्मण झूला को एक विरासत स्थल के रूप में संरक्षित करना इस परियोजना में नवाचार और परंपरा के बीच संतुलन को और भी मजबूत करता है।
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