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राणा सांगा के मुद्दे पर बैकफुट पर आए अखिलेश यादव! करणी सेना-क्षत्रिय समाज का विरोध या कोई दूसरी वजह, जानें

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अभय सिंह राठौड़, लखनऊ: देश के वीर महान योद्धा राणा सांगा के मुद्दे पर हुए भारी विरोध प्रदर्शन के बाद अब ये मामला धीरे-धीरे थमता नजर आ रहा है। राणा सांगा पर अपने विवादित बयान को लेकर सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने भले ही मांफी नहीं मांगी है, लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाहते हैं। एक तरह से सपा इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ गई है। इस बात की तस्दीक अखिलेश यादव के उस बयान से भी होती है, जिसमें उन्होंने सपा नेताओं को धार्मिक और इतिहास के मुद्दों पर बयानबाजी ना करने की नसीहत दी है।अखिलेश की इस नसीहत के पीछे आगामी विधानसभा चुनाव के साथ ही उनकी भविष्य की राजनीति में क्षत्रिय समाज और राणा सांगा को मानने वाले लोगों का विरोध माना जा रहा है। उधर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राणा सांगा का मुद्दा कभी भी पॉलिटिकल नहीं हो सकता है, न ही उन्हें सिर्फ एक कास्ट के नजरिये से देखा जा सकता है। वो देश के एक महान योद्धा रहे है। इस नाते उन्हें हर धर्म के लोग मानते हैं। करणी सेना और क्षत्रिय समाज का विरोधदरअसल समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने 21 मार्च को राज्यसभा में राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी करते हुए उन्हें गद्दार बताया था। उनकी इस टिप्पणी के बाद करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ यूपी, राजस्थान और मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू करना शुरू कर दिया था। करणी सेना ने आगरा स्थित सपा सांसद के घर का घेरावकर जमकर बवाल किया था।लखनऊ में भी करणी सेना और क्षत्रिय समाज ने जोरदार प्रदर्शन किया था। राणा सांगा को लेकर समाजवादी पार्टी के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन के बाद अखिलेश यादव की अपने नेताओं को दी गई नसीहत के बाद ऐसा माना जाने लगा है कि अखिलेश यादव की पार्टी अब राणा सांगा में मुद्दे पर पूरी तरह से बैकफुट आ चुकी है। हालांकि अखिलेश शनिवार को रामजीलाल सुमन से मुलाकात करने उनके आगरा स्थित घर गए थे, लेकिन उन्होंने सपा सांसद के राणा सांगा को लेकर दिए गए बयान का कहीं भी समर्थन नहीं किया है। सपा नेताओं को नसीहत देने के पीछे की मुख्य वजहउधर जानकारों की माने तो राणा सांगा के मुद्दे पर अखिलेश को नफा कम नुकसान ज्यादा होने की संभावना थी। क्योंकि जिस तरह से इस मुद्दे को लेकर दलित Vs क्षत्रिय की लड़ाई बनाई जा रही थी। वो मुद्दा कहीं भी टिकने वाला नहीं था। राणा सांगा एक वीर महान योद्धा थे। वो देश का गौरव है। उनको मानने वाले संख्य है और हर वर्ग से है। इसलिए यह कह देना की रामजीलाल सुमन के घेराव और उनके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन से सारा दलित समाज उनके साथ आ जायेगा, ये सरासर गलत है।सपा सांसद का विरोध उनके बयान की वजह से हो रहा था और फिर रामजीलाल सुमन दलितों के इतने बड़े नेता भी नहीं है, कि वो अपने दम पर दलितों का वोट सपा को दिला सकें। हां इतना जरूर है कि अगर अखिलेश राणा सांगा के मुद्दे को तूल दे देंगे, तो उन्हें नुकसान जरूर हो जाएगा। इस नुकसान की भरपाई करना भी मुश्किल हो जाएगा। बैकफुट पर आना बनी मजबूरीवरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि राणा सांगा की जो छवि भारतीय जनमानस के दिमाग में है, उस छवि के सामने रामजी लाल सुमन के बयान पर समाजवादी पार्टी को बैकफुट पर जाने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि सपा के इस बयानवीर नेता को पार्टी और अखिलेश यादव को फंसा दिया है।साथ ही वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि राणा सांगा का मुद्दा जातीय अस्मिता का प्रतीक नहीं हो सकता है न ही कभी भी पॉलिटिकल हो सकता है। राणा सांगा देश के महान योद्धा थे। राष्ट्र के गौरव हैं। ऐसे महान योद्धा पर विवादित टिप्पणी करके आप ठाकुर-दलित की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि क्षत्रिय समाज भले ही संख्या बल में कम हो, लेकिन बहुत वोटों को लुभाने और आकर्षित करने का काम करता हैं। भविष्य के लिए बैकफुट पर जाना ही होगा- सुरेश बहादुरसुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि राणा सांगा के मुद्दे पर क्षत्रिय समाज नाराज हुआ है। इसको लेकर सपा भले ही आरोप लगाए की जो विरोध प्रदर्शन हो रहा है, वो बीजेपी सरकार के इशारे पर किया जा रहा है। हालांकि सच्चाई यही है कि रामजी लाल सुमन के बयान से क्षत्रिय समाज की भावना आहत हुई है। ऐसे में विरोध-प्रदर्शन होना भी स्वाभाविक है।उन्होंने कहा कि इस विरोध प्रदर्शन में क्षत्रिय समाज का कोई बड़ा नेता आगे नहीं आया है, क्योंकि ये सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं है। सपा सांसद के बयान से जनमानस में नाराजगी है। ऐसे में अखिलेश यादव को भी भविष्य में राजनीति करनी है तो बैकफुट पर जाना ही होगा। यही वजह है कि इस मुद्दे को तूल न देकर सपा बैकफुट पर जाती हुई नजर आ रही है। अखिलेश को समाज से मतलब नहीं- मनोज सामनासीनियर जॉर्नलिस्ट अशोक यादव ने कहा कि समझदार लोग कभी इतिहास को लेकर बखेड़ा नहीं खड़ा करते हैं। आज हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं। पश्चिमी देशों से अपनी कम्पटीशन कर रहे हैं। इसलिए अच्छी बात है कि अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं को नसीहत दी है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज श्रीवास्तव सामना ने कहा कि अखिलेश उस बयान का इस्तेमाल कर अपना वोटबैंक बढ़ा रहे हैं।अखिलेश यादव का लक्ष्य सिर्फ सत्ता हासिल करना है। अपने हित के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अखिलेश यादव को समाज के नफा-नुकसान से मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि अखिलेश का जो रूप दिखता है वो असल में होता नहीं है और होता क्या है ये पहले पता नहीं चलता। इसलिए यह कहना कि अखिलेश इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ गए हैं, ये कहना मुश्किल है। कौन हैं राणा सांगाराजस्थान के गौरवशाली इतिहास में राणा सांगा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है। उनके युद्ध में 80 घाव लगने की गौरव गाथा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में बड़े सम्मान के साथ गाई जाती है। राणा सांगा का पूरा नाम 'महाराणा संग्राम सिंह' है। 1527 में भरतपुर के रूपवास तहसील के खानवा में बाबर और राणा सांगा के बीच जोरदार युद्ध हुआ। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में राणा सांगा को 80 घाव आए थे, लेकिन इसके बाद भी राणा सांगा ने युद्ध नहीं रोका। काल बनकर टूट पड़ने वाले राणा सांगा का नाम सुनकर दुश्मन भी डर से कांपते थे। महाराणा कुंभा के पोते राणा सांगा जिनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी के दिन हुआ था। उन्होंने अपने आस-पास की रियासत को जीतकर अपना परचम फहराया था। 30 जनवरी 1528 को चित्तौड़गढ़ में राणा सांगा को षडयंत्र के तहत जहर देकर मार दिया गया था।
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