ग्रेटर नोएडा: दिल्ली-एनसीआर के दिल में बन रहे जेवर एयरपोर्ट के भव्य सपनों के बीच एक कड़वी हकीकत भी पल रही है, रीसेटलमेंट एंड रीहैबलिटेशन (आरआर) सेंटर में विस्थापित लोगों की बदहाल जिंदगी। 5 साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन जिन लोगों ने अपनी जमीनें विकास के नाम पर दी, वे आज बेरोजगारी, बदहाल बुनियादी सुविधाओं और जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं। यह केवल पलायन और रोजगार की कमी का मामला नहीं, बल्कि सीधे तौर पर मानवीय अधिकारों के उल्लंघन का सवाल बन गया है।
आरआर सेंटर में रह रहे लोग 2000-2500 टीडीएस (टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स) तक का जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं, जो सीधे जमीन से बोरिंग करके निकाला जा रहा है। वादा था घर-घर पानी की आपूर्ति का, जिसके लिए एक विशाल पानी की टंकी भी खड़ी कर दी गई, लेकिन 5 साल बाद भी उसमें एक बूंद पानी नहीं आया। इन गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे बोतल बंद पानी खरीद सकें, इसलिए मजबूरी में वे इस दुषित पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे बीमारियां फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
आधे बिजली पैनल खराब, स्वास्थ्य केंद्र का पता नहींबिजली आपूर्ति भी यहां एक बड़ी चुनौती है। 400 से अधिक पैनल बॉक्स लगए गए हैं, लेकिन उनमें से आधे से ज्यादा खराब पड़े हैं। आरआर सेंटर चूंकि जंगल के करीब है, इसलिए बिजली विभाग के कर्मचारी भी यहां कम ही आते हैं और शिकायतों पर सुनवाई नहीं होती। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र खोलने का वादा भी हवा हो गया है। 5 साल बाद भी यहां स्वास्थ्य केंद्र नहीं बना, जिससे लोगों को महंगे प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है, जो उनकी आर्थिक कमर तोड़ रहा है।
चार बार प्रदर्शन के बाद भी खाली हाथ नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (नायल) ने लगभग 8 महीने पहले विस्थापितों को रोजगार देने के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया था। पात्र लोगों ने आवेदन भी किए, लेकिन आज तक किसी को भी नियुक्ति पत्र नहीं मिला है। लोगों का कहना है कि वे इसके लिए चार बार धरना-प्रदर्शन कर चुके है, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता है, नियुक्ति पत्र नहीं मिला है।
हमने अपनी जमीनें दी, तो फिर हमारे हक के लिए हमारे साथ धोखा क्यों हो रहा है? यह सवाल अब यहां के हर विस्थापित की जुबान पर है। उनका दर्द है कि जब जमीन की सहमति ली जा रही थी, तब अधिकारी हर संभव मदद का वादा करते थे, लेकिन अब वे यहां झांकने भी नहीं आते। लोगों का कहना है कि एयरपोर्ट तो शुरू हो जाएगा, लेकिन जमीने देने के बाद जो धोखा हमारे साथ हुआ है, उसने हमारी हंसती खेलती जिंदगी को बेरंग कर दिया है।
जनता से नजर नहीं मिला पाते- विधायकजेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने कहा कि इन विस्थापितों को पशुवाड़ा देने का वादा एग्रीमेंट में लिखा हुआ है। लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर है। टंकी खड़ी कर दी है। पानी कब आएगा, पता नहीं। हम बार-बार अधिकारियों से समस्याएं उठा रहे हैं। सीएम योगी खुद चाहते है, इन्हें कोई दिक्कत न हो। हर वादा पूरा हो। हम इनके बीच जाते है तो नजरे नहीं मिला पाते हैं।
एयरपोर्ट नोडल ऑफिसर शैलेंद्र भाटिया ने कहा कि किसी भी आरआर (रीसेटलमेंट एड रीहबलिटेशन) सेंटर में सभी सुविधाएं पूरी होने में वक्त तो लगता ही है। नई जगह पर जाकर आरआर सेंटर बसाया गया है। कोई भी नई जगह में सभी सुविधाएं धीरे-धीरे ही उपलब्ध कराई जाती है। अथॉरिटी हर एक वादा पूरा करने का प्रयास कर रही है।
विस्थापितों की कहानी उन्हीं की जुबानीआरआर निवासी सुबेर ने बताया कि पांच साल हो गए है। पानी की टंकी बनाकर खड़ी कर दी है। पानी की सप्लाई अभी तक शुरू नहीं हुई है। पूरे सेक्टर के लोग बोरिंग से निकलने वाला जहरीला पानी पीने को मजबूर है। लोग बीमार रहने लगे है। शाजिया ने कहा, यहां का पानी बहुत खराब है। हम लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि बोतल वाला पानी खरीद पी ले। जो जमीन से निकल रहा उसे ही पीते हैं। ज्यादातर लोगो को पेट से सबंधित दिक्कते हो रही है।
आयशा ने बताया कि पहले जहां हमारा गांव था। सरकारी अस्पताल वहां से थोड़ी दूर ही था। वहीं सब इलाज के लिए जाते थे। यहां सरकारी अस्पताल ही नहीं है और प्राइवेट में इलाज के लिए हमारे पास रुपये नहीं है। संजय ने बताया कि बिजली के 400 से ज्यादा पैनल यहां लगे हैं, लेकिन इनमें आधे से ज्यादा खराब है। आए दिन तकनीकी फॉल्ट होते रहते हैं। शिकायत के बाद भी कर्मचारी यहां कई-कई दिन आने में लगा देते है।
आरआर सेंटर में रह रहे लोग 2000-2500 टीडीएस (टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स) तक का जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं, जो सीधे जमीन से बोरिंग करके निकाला जा रहा है। वादा था घर-घर पानी की आपूर्ति का, जिसके लिए एक विशाल पानी की टंकी भी खड़ी कर दी गई, लेकिन 5 साल बाद भी उसमें एक बूंद पानी नहीं आया। इन गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे बोतल बंद पानी खरीद सकें, इसलिए मजबूरी में वे इस दुषित पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे बीमारियां फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
आधे बिजली पैनल खराब, स्वास्थ्य केंद्र का पता नहींबिजली आपूर्ति भी यहां एक बड़ी चुनौती है। 400 से अधिक पैनल बॉक्स लगए गए हैं, लेकिन उनमें से आधे से ज्यादा खराब पड़े हैं। आरआर सेंटर चूंकि जंगल के करीब है, इसलिए बिजली विभाग के कर्मचारी भी यहां कम ही आते हैं और शिकायतों पर सुनवाई नहीं होती। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र खोलने का वादा भी हवा हो गया है। 5 साल बाद भी यहां स्वास्थ्य केंद्र नहीं बना, जिससे लोगों को महंगे प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है, जो उनकी आर्थिक कमर तोड़ रहा है।
चार बार प्रदर्शन के बाद भी खाली हाथ नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (नायल) ने लगभग 8 महीने पहले विस्थापितों को रोजगार देने के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया था। पात्र लोगों ने आवेदन भी किए, लेकिन आज तक किसी को भी नियुक्ति पत्र नहीं मिला है। लोगों का कहना है कि वे इसके लिए चार बार धरना-प्रदर्शन कर चुके है, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता है, नियुक्ति पत्र नहीं मिला है।
हमने अपनी जमीनें दी, तो फिर हमारे हक के लिए हमारे साथ धोखा क्यों हो रहा है? यह सवाल अब यहां के हर विस्थापित की जुबान पर है। उनका दर्द है कि जब जमीन की सहमति ली जा रही थी, तब अधिकारी हर संभव मदद का वादा करते थे, लेकिन अब वे यहां झांकने भी नहीं आते। लोगों का कहना है कि एयरपोर्ट तो शुरू हो जाएगा, लेकिन जमीने देने के बाद जो धोखा हमारे साथ हुआ है, उसने हमारी हंसती खेलती जिंदगी को बेरंग कर दिया है।
जनता से नजर नहीं मिला पाते- विधायकजेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने कहा कि इन विस्थापितों को पशुवाड़ा देने का वादा एग्रीमेंट में लिखा हुआ है। लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर है। टंकी खड़ी कर दी है। पानी कब आएगा, पता नहीं। हम बार-बार अधिकारियों से समस्याएं उठा रहे हैं। सीएम योगी खुद चाहते है, इन्हें कोई दिक्कत न हो। हर वादा पूरा हो। हम इनके बीच जाते है तो नजरे नहीं मिला पाते हैं।
एयरपोर्ट नोडल ऑफिसर शैलेंद्र भाटिया ने कहा कि किसी भी आरआर (रीसेटलमेंट एड रीहबलिटेशन) सेंटर में सभी सुविधाएं पूरी होने में वक्त तो लगता ही है। नई जगह पर जाकर आरआर सेंटर बसाया गया है। कोई भी नई जगह में सभी सुविधाएं धीरे-धीरे ही उपलब्ध कराई जाती है। अथॉरिटी हर एक वादा पूरा करने का प्रयास कर रही है।
विस्थापितों की कहानी उन्हीं की जुबानीआरआर निवासी सुबेर ने बताया कि पांच साल हो गए है। पानी की टंकी बनाकर खड़ी कर दी है। पानी की सप्लाई अभी तक शुरू नहीं हुई है। पूरे सेक्टर के लोग बोरिंग से निकलने वाला जहरीला पानी पीने को मजबूर है। लोग बीमार रहने लगे है। शाजिया ने कहा, यहां का पानी बहुत खराब है। हम लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि बोतल वाला पानी खरीद पी ले। जो जमीन से निकल रहा उसे ही पीते हैं। ज्यादातर लोगो को पेट से सबंधित दिक्कते हो रही है।
आयशा ने बताया कि पहले जहां हमारा गांव था। सरकारी अस्पताल वहां से थोड़ी दूर ही था। वहीं सब इलाज के लिए जाते थे। यहां सरकारी अस्पताल ही नहीं है और प्राइवेट में इलाज के लिए हमारे पास रुपये नहीं है। संजय ने बताया कि बिजली के 400 से ज्यादा पैनल यहां लगे हैं, लेकिन इनमें आधे से ज्यादा खराब है। आए दिन तकनीकी फॉल्ट होते रहते हैं। शिकायत के बाद भी कर्मचारी यहां कई-कई दिन आने में लगा देते है।
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