नई दिल्ली: अक्टूबर में शाकाहारी थाली 17% और मांसाहारी थाली करीब 12% सस्ती हुई। यह जानकारी क्रिसिल के रोटी राइस रेट (RRR) इंडेक्स से मिली। सब्जियों और दालों की कीमतों में आई भारी गिरावट की वजह से ऐसा हुआ। इसका सस्ते रूसी तेल के अप्रत्यक्ष लाभ से भी कनेक्शन है। कच्चे तेल की कम कीमतों ने लॉजिस्टिक्स की लागत को कम रखने में मदद की। इससे खाद्य पदार्थों की खुदरा कीमतें कंट्रोल में रहीं। इसका भारत को सीधा फायदा मिला। हालांकि, भारत का यह आर्थिक संतुलन अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक और व्यापारिक तनाव से चुनौती झेल रहा है। अमेरिका रूसी तेल खरीद के लिए भारत पर टैरिफ लगाकर दबाव बना रहा है। इससे भारत का तेल आयात बिल 9-11 अरब डॉलर बढ़ने के आसार हैं। यह महंगाई को भी फिर से बढ़ा सकता है। आगे यही सबसे बड़ा खतरा दिख रहा है।
क्रिसिल रिपोर्ट के अनुसार, आलू के दाम 31% कम हुए क्योंकि रबी की फसल अच्छी हुई। टमाटर 40% सस्ता हुआ क्योंकि पश्चिमी और दक्षिणी बाजारों से अच्छी सप्लाई आई। प्याज के दाम सबसे ज्यादा 51% गिरे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि व्यापारी नई खरीफ फसल आने से पहले अपना स्टॉक खाली कर रहे थे और निर्यात की मांग भी कम थी।
दालों के दामों में बड़ी गिरावट
दालों के दाम 17% घटे। इसका एक बड़ा कारण दालों का आयात बढ़ना भी है। बंगाल चने का आयात नौ गुना बढ़ा, पीली मटर 85% और उड़द 31% ज्यादा आयात हुई। वहीं, त्योहारी मांग के कारण वनस्पति तेल 11% महंगा हुआ और एलपीजी के दाम 6% बढ़े। इन वजहों से थाली की लागत में और ज्यादा कमी नहीं आ पाई।
मांसाहारी थाली में कमी थोड़ी कम आई क्योंकि इसके आधे से ज्यादा खर्च का हिस्सा रखने वाले ब्रॉयलर (चिकन) के दाम सिर्फ 6% गिरे। लेकिन, सस्ती सब्जियों और दालों ने कुल लागत को नीचे लाने में मदद की।
जून 2017 के बाद सबसे कम महंगाई
महीने-दर-महीने देखें तो यह गिरावट मामूली थी। शाकाहारी थाली की लागत 1% कम हुई, जबकि मांसाहारी थाली 3% सस्ती हुई। टमाटर और प्याज के दाम 8% और 3% गिरे। वहीं, ज्यादा सप्लाई के कारण ब्रॉयलर के दाम 4% कम हुए।
क्रिसिल का RRR इंडेक्स पूरे भारत में घर में बनने वाली एक आम थाली की लागत को ट्रैक करता है। यह बताता है कि खाने-पीने की महंगाई का आम आदमी के बजट पर कितना असर पड़ रहा है।
भारत की खुदरा महंगाई दर कंट्रोल में है। सितंबर 2025 में खुदरा महंगाई दर 1.54% पर आ गई थी। यह जून 2017 के बाद सबसे कम है। इस बड़ी गिरावट का श्रेय पिछले साल के मुकाबले बेहतर आधार और सब्जियों, तेल, फल, दाल, अनाज, अंडे और ईंधन जैसी जरूरी चीजों की महंगाई में कमी को जाता है। खुदरा महंगाई के अक्टूबर के आंकड़े इसी हफ्ते आने वाले हैं। सस्ते रूसी तेल ने भी भारत को परोक्ष तौर पर महंगाई को कंट्रोल करने में मदद की है। इसके कारण पेट्रोल-डीजल के साथ दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्टों के दाम बढ़ नहीं पाए।
क्रिसिल रिपोर्ट के अनुसार, आलू के दाम 31% कम हुए क्योंकि रबी की फसल अच्छी हुई। टमाटर 40% सस्ता हुआ क्योंकि पश्चिमी और दक्षिणी बाजारों से अच्छी सप्लाई आई। प्याज के दाम सबसे ज्यादा 51% गिरे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि व्यापारी नई खरीफ फसल आने से पहले अपना स्टॉक खाली कर रहे थे और निर्यात की मांग भी कम थी।
दालों के दामों में बड़ी गिरावट
दालों के दाम 17% घटे। इसका एक बड़ा कारण दालों का आयात बढ़ना भी है। बंगाल चने का आयात नौ गुना बढ़ा, पीली मटर 85% और उड़द 31% ज्यादा आयात हुई। वहीं, त्योहारी मांग के कारण वनस्पति तेल 11% महंगा हुआ और एलपीजी के दाम 6% बढ़े। इन वजहों से थाली की लागत में और ज्यादा कमी नहीं आ पाई।
मांसाहारी थाली में कमी थोड़ी कम आई क्योंकि इसके आधे से ज्यादा खर्च का हिस्सा रखने वाले ब्रॉयलर (चिकन) के दाम सिर्फ 6% गिरे। लेकिन, सस्ती सब्जियों और दालों ने कुल लागत को नीचे लाने में मदद की।
जून 2017 के बाद सबसे कम महंगाई
महीने-दर-महीने देखें तो यह गिरावट मामूली थी। शाकाहारी थाली की लागत 1% कम हुई, जबकि मांसाहारी थाली 3% सस्ती हुई। टमाटर और प्याज के दाम 8% और 3% गिरे। वहीं, ज्यादा सप्लाई के कारण ब्रॉयलर के दाम 4% कम हुए।
क्रिसिल का RRR इंडेक्स पूरे भारत में घर में बनने वाली एक आम थाली की लागत को ट्रैक करता है। यह बताता है कि खाने-पीने की महंगाई का आम आदमी के बजट पर कितना असर पड़ रहा है।
भारत की खुदरा महंगाई दर कंट्रोल में है। सितंबर 2025 में खुदरा महंगाई दर 1.54% पर आ गई थी। यह जून 2017 के बाद सबसे कम है। इस बड़ी गिरावट का श्रेय पिछले साल के मुकाबले बेहतर आधार और सब्जियों, तेल, फल, दाल, अनाज, अंडे और ईंधन जैसी जरूरी चीजों की महंगाई में कमी को जाता है। खुदरा महंगाई के अक्टूबर के आंकड़े इसी हफ्ते आने वाले हैं। सस्ते रूसी तेल ने भी भारत को परोक्ष तौर पर महंगाई को कंट्रोल करने में मदद की है। इसके कारण पेट्रोल-डीजल के साथ दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्टों के दाम बढ़ नहीं पाए।
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