चंडीगढ़ में आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार ने आत्महत्या कर ली। यह घटना उनके गनमैन की शराब कारोबारी से वसूली के आरोप में गिरफ्तारी के एक दिन बाद हुई। गनमैन ने पूछताछ में आईपीएस अधिकारी का नाम लिया था। जिस रिवाल्वर से आईपीएस ने खुद को गोली मारी, वह भी गनमैन की ही थी। पूरन कुमार अपने अधिकारों के लिए अनुसूचित जाति आयोग तक लड़ाई लड़ने के लिए जाने जाते थे और उन्हें सराहनीय सेवाओं के लिए पुलिस पदक से भी सम्मानित किया गया था। उनकी पत्नी पी अमनीत कुमार भी हरियाणा कैडर की 2001 बैच की आइएएस अधिकारी हैं।
वाई पूरन कुमार का हरियाणा की उच्च स्तरीय अफसरशाही से कई बार विवाद हुआ। उन्होंने जूनियर अधिकारियों को पदोन्नति, मनपसंद सरकारी वाहन न मिलने और 'एक अधिकारी-एक आवास' की नीति लागू कराने जैसे मुद्दों को उठाया था। इन मुद्दों पर उनकी कई शीर्ष आइएएस-आइपीएस अधिकारियों से तनातनी हुई, जिसके कारण वे काफी चर्चा में रहे।
पिछले हफ्ते ही वाई पूरन कुमार को पीटीसी (पुलिस प्रशिक्षण केंद्र) सुनारिया का आईजी बनाया गया था। इससे पहले, रोहतक मंडल के आईजी रहते हुए उन्होंने भिवानी की मनीषा की संदिग्ध मौत की जांच में महत्वपूर्ण सुराग जोड़कर जांच को एक नई दिशा दी थी।
पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान, वाई पूरन कुमार ने तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी अनुराग अग्रवाल के खिलाफ भी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य चुनाव आयोग जातिगत मामलों को देखकर अफसरों पर कार्रवाई कर रहा है। पूरन कुमार का कहना था कि अनुसूचित जाति के अफसरों को बदला जा रहा है, जबकि सवर्ण जाति के अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
यह घटना आईपीएस अधिकारी के विवादों से पुराने रिश्ते को उजागर करती है। उनके गनमैन की गिरफ्तारी और फिर आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला अफसरशाही में चल रहे तनाव और व्यक्तिगत अधिकारों की लड़ाई को भी दर्शाता है। पूरन कुमार की पत्नी का आइएएस अधिकारी होना भी इस मामले में एक और पहलू जोड़ता है। उनकी पत्नी विदेश सहयोग विभाग में आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं।
वाई पूरन कुमार का अपने अधिकारों के लिए लड़ना और अनुसूचित जाति आयोग तक जाना उनकी दृढ़ता को दिखाता है। उन्हें सराहनीय सेवाओं के लिए पुलिस पदक मिलना उनकी पेशेवर उपलब्धियों का प्रमाण है। लेकिन इन सबके बावजूद, उनका अफसरशाही से विवादों में रहना यह बताता है कि व्यवस्था में कुछ ऐसी खामियां थीं जिनसे वे जूझ रहे थे।
मनीषा की संदिग्ध मौत की जांच में उनकी भूमिका ने उन्हें एक ऐसे अधिकारी के रूप में भी प्रस्तुत किया जो जटिल मामलों को सुलझाने में सक्षम था। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ उनकी शिकायत ने यह भी दिखाया कि वे व्यवस्थागत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने से पीछे नहीं हटते थे।
यह पूरी घटना एक आईपीएस अधिकारी के जीवन के उतार-चढ़ाव और उनके सामने आने वाली चुनौतियों का एक दुखद चित्रण है। यह सवाल उठाती है कि क्या व्यवस्था इतनी कठोर है कि एक अधिकारी को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़े।
वाई पूरन कुमार का हरियाणा की उच्च स्तरीय अफसरशाही से कई बार विवाद हुआ। उन्होंने जूनियर अधिकारियों को पदोन्नति, मनपसंद सरकारी वाहन न मिलने और 'एक अधिकारी-एक आवास' की नीति लागू कराने जैसे मुद्दों को उठाया था। इन मुद्दों पर उनकी कई शीर्ष आइएएस-आइपीएस अधिकारियों से तनातनी हुई, जिसके कारण वे काफी चर्चा में रहे।
पिछले हफ्ते ही वाई पूरन कुमार को पीटीसी (पुलिस प्रशिक्षण केंद्र) सुनारिया का आईजी बनाया गया था। इससे पहले, रोहतक मंडल के आईजी रहते हुए उन्होंने भिवानी की मनीषा की संदिग्ध मौत की जांच में महत्वपूर्ण सुराग जोड़कर जांच को एक नई दिशा दी थी।
पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान, वाई पूरन कुमार ने तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी अनुराग अग्रवाल के खिलाफ भी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य चुनाव आयोग जातिगत मामलों को देखकर अफसरों पर कार्रवाई कर रहा है। पूरन कुमार का कहना था कि अनुसूचित जाति के अफसरों को बदला जा रहा है, जबकि सवर्ण जाति के अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
यह घटना आईपीएस अधिकारी के विवादों से पुराने रिश्ते को उजागर करती है। उनके गनमैन की गिरफ्तारी और फिर आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला अफसरशाही में चल रहे तनाव और व्यक्तिगत अधिकारों की लड़ाई को भी दर्शाता है। पूरन कुमार की पत्नी का आइएएस अधिकारी होना भी इस मामले में एक और पहलू जोड़ता है। उनकी पत्नी विदेश सहयोग विभाग में आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं।
वाई पूरन कुमार का अपने अधिकारों के लिए लड़ना और अनुसूचित जाति आयोग तक जाना उनकी दृढ़ता को दिखाता है। उन्हें सराहनीय सेवाओं के लिए पुलिस पदक मिलना उनकी पेशेवर उपलब्धियों का प्रमाण है। लेकिन इन सबके बावजूद, उनका अफसरशाही से विवादों में रहना यह बताता है कि व्यवस्था में कुछ ऐसी खामियां थीं जिनसे वे जूझ रहे थे।
मनीषा की संदिग्ध मौत की जांच में उनकी भूमिका ने उन्हें एक ऐसे अधिकारी के रूप में भी प्रस्तुत किया जो जटिल मामलों को सुलझाने में सक्षम था। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ उनकी शिकायत ने यह भी दिखाया कि वे व्यवस्थागत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने से पीछे नहीं हटते थे।
यह पूरी घटना एक आईपीएस अधिकारी के जीवन के उतार-चढ़ाव और उनके सामने आने वाली चुनौतियों का एक दुखद चित्रण है। यह सवाल उठाती है कि क्या व्यवस्था इतनी कठोर है कि एक अधिकारी को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़े।
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