नई दिल्ली: भारत में मध्यम वर्गएक मुश्किल दौर से गुजर रहा है। पुणे के स्टार्टअप संस्थापक सौरभ मंगरुलकर ने इस बात पर जोर दिया है। मध्यम वर्ग न तो सरकारी मदद के लिए योग्य है और न ही गरीबी से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त रूप से अमीर है। वो सिस्टम को चलाते हैं, लेकिन सिस्टम उनकी मदद नहीं करता। मंगरुलकर के लिंकडइन पोस्ट के अनुसार, 2.5 लाख रुपये सालाना से ज्यादा कमाने वाले लोगों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता। जबकि इतनी आय में शहरों में अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और घर का खर्च चलाना मुश्किल है। इसलिए मध्यम वर्ग कर्ज और अधूरे सपनों के चक्र में फंसा रहता है।सौरभ मंगरुलकर का कहना है कि भारत में मध्यम वर्ग का जीवन गरीबों से भी ज्यादा कठिन है। उन्होंने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में ये बात कही। इसने बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान खींचा है। सौरभ के अनुसार, मध्यम वर्ग को न तो स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलते हैं, न ही शिक्षा संबंधी और न ही किसी तरह की सब्सिडी या सरकारी सहायता मिलती है। क्या है असल समस्या की जड़?समस्या की जड़ यह है कि एक निश्चित आय सीमा के बाद लाखों लोग सरकारी योजनाओं से बाहर हो जाते हैं। मंगरुलकर के अनुसार, 'अगर आप सालाना 2.5 लाख रुपये से ज्यादा कमाते हैं - यानी महीने के 20,000 रुपये - तो आपको कुछ नहीं मिलता।' उनका तर्क है कि यह आय शहरों में रहने के लिए काफी नहीं है। उन्होंने कहा, '20,000 से 50,000 रुपये प्रति माह कमाने वाले लोग अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा या एक अच्छे इलाके में छोटा सा मकान खरीदने के लिए भी संघर्ष करते हैं।'मध्यम वर्ग एक ऐसी स्थिति में फंस गया है जहां वह न तो सरकारी योजनाओं के लिए पात्र है और न ही निजी सेवाओं का खर्च उठा सकता है। कारोबारी दिग्गज ने कहा, 'वे अच्छे अस्पतालों में इलाज नहीं करा सकते, लेकिन सरकारी अस्पतालों में जाना नहीं चाहते। वे निजी स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते, लेकिन सरकारी स्कूल उनके लिए ठीक नहीं हैं।' हर तरह की रियायत से धोना पड़ता है हाथ मंगरुलकर कहते हैं, 'उन्हें LPG सब्सिडी नहीं मिलती। न ही राशन या बिजली पर कोई लाभ मिलता है। उन्हें कुछ नहीं मिलता। वे गरीब नहीं हैं, इसलिए उन्हें कोई मदद नहीं मिलती। वे अमीर नहीं हैं, इसलिए वे अपनी मदद नहीं कर सकते। वे बस फंसे हुए हैं।'इससे भी बुरी बात यह है कि वे टैक्स भरते हैं, लेकिन उन्हें कुछ वापस नहीं मिलता। कई लोगों का जीवन कर्ज और अधूरे सपनों का एक लंबा चक्र बन जाता है। मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों की शिक्षा या एक छोटा सा मकान खरीदने के लिए अपनी जिंदगी के 10-15 साल लोन और ईएमआई भरने में बिता देते हैं।जब कुछ गलत होता है तो उन्हें कोई सहारा नहीं मिलता। अगर उनकी नौकरी चली जाती है तो कोई उनकी मदद नहीं करता। अगर वे बीमार पड़ जाते हैं तो कोई उनकी मदद नहीं करता। कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने दम पर जीवित रहें। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने दम पर ही सब कुछ करें।मंगरुलकर की यह बात मध्यम वर्ग की मुश्किलों को उजागर करती है। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए कि मध्यम वर्ग को कैसे मदद मिल सकती है ताकि वे भी बेहतर जीवन जी सकें।
You may also like
उपराष्ट्रपति आज आएंगे ग्वालियर, कृषि विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में करेंगे शिरकत
माय रीवा सिटीजन ऐप का मुख्यमंत्री करेंगे शुभारंभ
Brain Teaser Images: 'दंग' के बीच कहां लिखा है 'दंड', आंखों पर है ऐतबार तो 4 सेकंड में पता करिए जवाब
पहलगाम आतंकी हमले का जब तक बदला पूरा नहीं... केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने खाई कसम का सूरत में ऐलान
विदेशी मुद्रा भंडार... वे 5 कारण जिन्होंने पाकिस्तान को बना दिया पिद्दी, भारत के आगे कहीं नहीं ठहरता यह दुश्मन देश