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मछली खाकर आरम्भ किया जाता है व्रत,तीन चीजें होती हैं इसमें महत्वपूर्ण, जरूर जानें

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लाइव हिंदी खबर :-मिथिलांचल और पूर्वांचल में हर साल जितिया व्रत पूर्ण श्रद्धा से मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है। इसदिन विवाहित महिलाएं अपनी संतान के लिए व्रत करती हैं। एक पौराणिक कहानी को आधार मानते हुए इस दिन संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए व्रत किया जाता है।

जितिया या जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत पर महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं। सूर्योदय से पहले ही कुछ खाया-पीया जाता है और इसके बाद पूरे दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करके व्रत किया जाता है। इस व्रत के अंत में राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है और इसी के साथ तीसरे दिन व्रत का पारण होता है।

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व्रत में खाते हैं मछली

आपको जानकार यह हैरानी होगी लेकिन जितिया ऐसा व्रत है जिसमें मांसाहारी चीज का सेवन करके व्रत आरम्भ किया जाता है। मिथिलांचल और पूर्वांचल के कई क्षेत्रों में महिलाएं मछली खाकर इस व्रत को शुरू करती हैं।

ऐसा करने के पीछे भी कई पौराणिक मान्यताएं बताई जाती हैं लेकिन सबसे प्रचलित कहानी चील और सियार की है। इस कहानी को आधार मानते हुए इसदिन मच्छली खाकर व्रत शुरू किया जाता है।

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मरुआ की रोटी

मछली के अलावा एनी कुछ पारंपरिक पकवान भी इस व्रत की शोभा को बढ़ाते हैं। व्रत में गेहूं के आटे की रोटी की बजाय सुबह मरुआ के आटे की रोटी बनाई जाती है और इसी का सेवन किया जाता है।

झिंगनी के पत्ते
ये एक ऐसी चीज है जिसकी उपज भी मिथिलांचल और पूर्वांचल के क्षेत्रों में होती है। झिंगनी के पत्ते की सब्जी पारंपरिक सब्जी है जिसे जितिया व्रत में जरूर बनाया जाता है। कहा ये भी जाता है कि वे शाकाहारी महिलाएं जो व्रत में मछली का सेवन नहीं कर सकती हैं वे मछली की बजाय झिंगनी के पत्ते की सब्जी खाती हैं।

 

imageनोनी का साग

जितिया व्रत में नोनी का साग भी बनाया जाता है और इसका सेवन करना भी इस व्रत की परंपरा का हिस्सा ही है। नोनी का साग कैल्शियम और आयरन से युक्त होता है और व्रत मने भूखे-प्यासे रहने से महिलाओं को कब्ज भी हो जाती है जिसकी वजह से इस सब्जी का सेवन उन्हें राहत देता है।

व्रत का लॉकेट

खाने पीने की चीजों के अलावा इस व्रत मने एक खास तरह का लॉकेट पहनने का भी महत्व है। इसे जितिया व्रत का लॉकेट कहा जाता है जिसे लाल या गुलाबी रंग के धागे में पहना जाता है। व्रत के पहले दिन से ही व्रत कर रही महिला इसे धारण करती है।

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