दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की विशेष जांच समिति की रिपोर्ट में उनके सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की पुष्टि होने के बाद केंद्र सरकार उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। यह प्रस्ताव आगामी मॉनसून सत्र में संसद के दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है।
14 मार्च को जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में लगी आग की घटना की जांच के दौरान भारी नकद रकम मिलने का खुलासा हुआ था। इस जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति बनाई थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी एस संधवालया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस अनु सिवरमन शामिल थीं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन आरोपों को गंभीर और सही माना।
जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महाभियोग की सिफारिश भेजी है। इसके बाद सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संसद में प्रस्ताव लाने की योजना बनाई है।
हालांकि जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है। उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया था, जहां उन्होंने शपथ ग्रहण तो की लेकिन अब तक उन्हें कोई न्यायिक काम नहीं सौंपा गया है।
संसदीय प्रक्रिया के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक होता है। इसके बाद दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित किया जाना होता है। वर्तमान में संसद के अध्यक्ष विपक्ष से सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि मामला सुचारू रूप से आगे बढ़ सके।
इस मामले ने न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सभी राजनीतिक दल इस विवाद को संवैधानिक तरीके से सुलझाने पर जोर दे रहे हैं।
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