New Delhi, 28 अगस्त . मेजर ध्यानचंद ‘हॉकी के जादूगर’ थे. उनका खेल अद्भुत था. जब गेंद उनके पास होती, तो इसे उनसे छीनना नामुमकिन होता. मेजर ध्यानचंद ने भारत को तीन ओलंपिक स्वर्ण दिलाए. उनकी गिनती दुनिया के महानतम खिलाड़ियों में होती है. आज भी भारतीय उनके खेल को याद करके गर्व महसूस करते हैं.
29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे ध्यान सिंह के पिता ब्रिटिश सेना में थे. वह हॉकी के शौकीन थे. पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ध्यान सिंह महज 16 साल की उम्र में बतौर सिपाही सेना में शामिल हो गए. उन्होंने भी सेना में सेवा देते हुए हॉकी खेलना शुरू कर दिया.
ध्यान सिंह के दोस्त उन्हें ‘चंद’ कहकर पुकारते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि ध्यान सिंह ड्यूटी के बाद अक्सर चांदनी रात में घंटों हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे. ऐसे में उनका नाम ‘ध्यानचंद’ पड़ गया.
सेना में रहते हुए ध्यानचंद ने रेजिमेंटल मैच खेलने शुरू कर दिए थे. साल 1922 से 1926 के बीच अपने शानदार खेल के चलते ध्यानचंद सुर्खियों में आ गए.
मेजर ध्यानचंद की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें सेना की टीम में न्यूजीलैंड दौरे के लिए चुन लिया गया. इस दौरे पर मेजर ध्यानचंद ने शानदार प्रदर्शन किया और सेना की टीम ने 18 मैच जीते. सिर्फ एक ही मुकाबले में उसे हार मिली.
जब नवगठित भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) ने 1928 ओलंपिक के लिए एक टीम भेजने का फैसला किया, तो ध्यानचंद को ट्रायल के लिए बुलाया गया. ध्यानचंद ने न सिर्फ टीम में जगह बनाई, बल्कि पांच मुकाबलों में 14 गोल दागते हुए शीर्ष स्कोरर भी रहे. भारतीय हॉकी टीम पूरे टूर्नामेंट में अजेय रही और गोल्ड जीता.
साल 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में भारत को हॉकी में गोल्ड मेडल जिताने में मेजर ध्यानचंद का अहम योगदान रहा. ‘हॉकी के जादूगर’ ने तीन ओलंपिक के 12 मुकाबलों में 37 गोल दागे.
1936 ओलंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने जर्मनी को 8-1 से शिकस्त दी. जर्मनी की करारी हार से हिटलर काफी गुस्से में था. वह मुकाबले के बीच में ही स्टेडियम से बाहर चला गया.
इस मुकाबले की समाप्ति के बाद हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात की और उन्हें अपनी सेना में बड़ा पद ऑफर किया, लेकिन ध्यानचंद ने विनम्रता के साथ इसे ठुकरा दिया.
जब मेजर ध्यानचंद हॉकी खेलते, तो मानो गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक ही जाती. हॉलैंड के खिलाफ एक मैच के दौरान उनकी हॉकी स्टिक को तोड़कर चेक तक किया गया, लेकिन जांच में उन्हें निर्दोष पाया गया.
जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, उस वक्त तक ध्यानचंद 40 साल से ज्यादा के हो चुके थे. साल 1948 में जब स्वतंत्र भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, उस समय मेजर ध्यानचंद ने टीम का हिस्सा बनने से मना कर दिया. उनका मानना था कि अब युवा खिलाड़ियों को मौका देने का समय आ गया है.
ध्यानचंद ने भारतीय सेना में करीब 34 साल अपनी सेवा दी. वह 1956 में बतौर लेफ्टिनेंट रिटायर हुए.
करीब 22 वर्षों तक मेजर ध्यानचंद ने भारत के लिए हॉकी खेलते हुए 400 से ज्यादा गोल दागे. ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित इस दिग्गज हॉकी खिलाड़ी के नाम पर आज खिलाड़ियों को ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड’ दिए जाते हैं.
3 दिसंबर 1979 को मेजर ध्यानचंद ने कैंसर से जंग लड़ते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया. भारत में 29 अगस्त को उनके जन्मदिवस को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
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आरएसजी
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