चित्रकूट, 25 अगस्त . जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य की ओर से संत प्रेमानंद महाराज पर की गई टिप्पणी को लेकर संत समाज में नाराजगी देखने को मिल रही है. अब इस पर विवाद को बढ़ता देख स्वामी रामभद्राचार्य ने सफाई पेश की है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया और उनका किसी भी संत का अनादर करने का कोई इरादा नहीं था.
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने बयान में कहा, “मैंने प्रेमानंद महाराज के प्रति किसी भी तरह की अपमानजनक टिप्पणी नहीं की है, वे मेरे पुत्र के समान हैं. मैंने केवल इतना कहा कि सभी को संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए. आज कुछ लोग ऐसे हैं, जो बिना संस्कृत के ज्ञान के उपदेश देने का काम कर रहे हैं. मैंने अपने शिष्यों सहित सभी से कहा है कि प्रत्येक हिंदू को संस्कृत सीखनी चाहिए.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्कृत और भारतीय संस्कृति देश के दो मजबूत स्तंभ हैं, जिन्हें संरक्षित करना हर हिंदू का कर्तव्य है.
रामभद्राचार्य ने कहा, “मैं आज भी स्वयं प्रतिदिन अठारह घंटे अध्ययन करता हूं और आगे भी करता रहूंगा. मैंने कभी प्रेमानंद के प्रति अनादरपूर्ण व्यवहार नहीं किया और ना ही कोई ऐसे शब्द कहे हैं. हां मैनें ये कहा कि भारत के दो महान स्तंभ हैं संस्कृत और संस्कृति. भारतीय संस्कृति को समझने के लिए संस्कृत सीखना अत्यंत आवश्यक है. मैं किसी के खिलाफ नहीं बोल रहा हूं. सभी संत मुझे प्रिय हैं और आगे भी रहेंगे.
स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि जब भी प्रेमानंद महाराज उनसे मिलने आएंगे, वे उन्हें आशीर्वाद देंगे.
उन्होंने कहा, “भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए संस्कृत का अध्ययन करना आवश्यक है. मेरे बारे में फैलाई जा रही अफवाहें झूठी हैं. मेरे बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है. मैंने प्रेमानंद महाराज या किसी अन्य संत के प्रति कभी अपशब्द नहीं कहा और न ही भविष्य में कहूंगा. मेरे लिए सभी संत सम्मान के अधिकारी हैं.”
दरअसल एक पॉडकास्ट के दौरान जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज को लेकर ऐसा बयान दिया, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया. उन्होंने प्रख्यात संत प्रेमानंद महाराज को चुनौती देते हुए कहा, “चमत्कार अगर है, तो मैं चैलेंज करता हूं प्रेमानंद जी एक अक्षर मेरे सामने संस्कृत बोलकर दिखा दें, या मेरे कहे हुए संस्कृत श्लोकों का अर्थ समझा दें.”
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एकेएस/जीकेटी
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