वाराणसी, 16 अक्टूबर . उत्तर प्रदेश की प्राचीन नगरी वाराणसी को मंदिरों का शहर कहा जाता है. यहां हर मंदिर का अपना अलग धार्मिक और पौराणिक महत्व है. इन्हीं में से एक है काशी का प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर, जो न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि भक्तों के लिए सुरक्षा और न्याय का प्रतीक भी माना जाता है.
वाराणसी में स्थित यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है. हर Sunday और Tuesday को यहां भारी भीड़ रहती है. देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां पहुंचकर बाबा का आशीर्वाद लेते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं.
माना जाता है कि जो व्यक्ति विधि-विधान से बाबा काल भैरव के दरबार में हाजिरी लगाता है, उसके जीवन की हर बाधा दूर हो जाती है.
काशी के राजा स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं, और उन्हीं की आज्ञा से बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल और सेनापति नियुक्त किया गया है.
कहा जाता है कि काल भैरव भगवान शिव के ही रुद्र अवतार हैं. उनका स्वरूप न्याय और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है. वे केवल फल देने वाले देव नहीं हैं, बल्कि दोषियों को दंड देने वाले देवता भी हैं.
शास्त्रों के अनुसार, काल भैरव पर एक बार ब्रह्म हत्या का दोष लगा था, जिसके प्रायश्चित्त के लिए उन्होंने तीनों लोकों का भ्रमण किया. अंततः काशी पहुंचकर उन्हें इस दोष से मुक्ति मिली. उसी समय भगवान शिव ने उन्हें आदेश दिया कि वे यहीं रहकर तप करें और काशी की रक्षा करें. तभी से उन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है.
वाराणसी में काल भैरव के आठ रूप पूजे जाते हैं, जैसे दंडपाड़ी, लाट भैरव आदि. इन सभी रूपों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि जो व्यक्ति बिना काल भैरव मंदिर के दर्शन किए काशी विश्वनाथ धाम पहुंचता है, उसके दर्शन अधूरे माने जाते हैं. इसलिए हर भक्त पहले काशी कोतवाल का आशीर्वाद लेकर ही भगवान विश्वनाथ के दर्शन करता है.
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पीआईएम/एबीएम
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