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'काकोरी कांड' ने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें, युवाओं में जगाई थी आजादी की अलख

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New Delhi, 8 अगस्त . काकोरी कांड, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है. इसे ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ या ‘काकोरी षड्यंत्र’ के नाम से भी जाना जाता है. यह घटना 9 अगस्त 1925 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ के निकट ‘काकोरी रेलवे स्टेशन’ के पास घटी थी. इस कांड ने न केवल अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया, बल्कि देश के युवाओं में स्वतंत्रता की ललक को और प्रबल कर दिया था.

तब ‘काकोरी कांड’ एक सशस्त्र क्रांति का प्रतीक बन गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ हथियार खरीदने के लिए धन जुटाना और उनकी सत्ता को चुनौती देना था. ‘काकोरी कांड’ की योजना हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के क्रांतिकारियों ने बनाई थी, जिसकी स्थापना 1924 में सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए की गई थी.

इस संगठन के प्रमुख नेताओं में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, शचींद्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल खन्ना, बनवारी लाल और मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे. इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने का साहसिक निर्णय लिया, ताकि स्वतंत्रता संग्राम के लिए हथियार और संसाधन जुटाए जा सके.

8 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में शाहजहांपुर में एक आपात बैठक हुई, जिसमें अगले दिन यानी 9 अगस्त को ट्रेन लूटने की योजना बनाई गई. यह ट्रेन शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही थी और इसमें ब्रिटिश सरकार का खजाना था. क्रांतिकारियों ने काकोरी के पास ट्रेन को रोकने की योजना बनाई.

9 अगस्त को, राजेंद्र लाहिड़ी ने ट्रेन की चेन खींचकर उसे रोका, और बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और अन्य ने गार्ड को काबू में कर लिया. जर्मन माउजर पिस्तौल और अन्य हथियारों की मदद से उन्होंने खजाने के बक्से को तोड़ा और हजारों रुपए लूट लिए. हालांकि, इस दौरान एक यात्री की दुर्घटनावश गोली लगने से मौत हो गई, जिसने इस घटना को हत्या का मामला बना दिया.

‘काकोरी कांड’ के बाद ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए व्यापक तलाशी अभियान शुरू किया. एक महीने के अंदर, एचआरए के कई सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी संदर्भ में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. 17 दिसंबर 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा में, 19 दिसंबर 1927 को बिस्मिल को गोरखपुर में, अशफाक को फैजाबाद में और ठाकुर रोशन सिंह को नैनी सेंट्रल जेल में फांसी दी गई. चंद्रशेखर आजाद और कुछ अन्य क्रांतिकारी फरार होने में सफल रहे.

‘काकोरी कांड’ ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया जोश भरा. इस घटना ने साबित कर दिया कि भारतीय युवा अपनी आजादी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. क्रांतिकारियों का बलिदान आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. ‘काकोरी कांड’ न केवल एक ट्रेन डकैती थी, बल्कि यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक साहसिक विद्रोह था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी.

एससीएच/जीकेटी

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