इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा अब से किसी भी पुलिस दस्तावेज़, जैसे FIR और जब्ती मेमो में आरोपी की जाति का उल्लेख नहीं किया जायेगा। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इसे एक “कानूनी भ्रांति” और “संवैधानिक नैतिकता के लिए गंभीर चुनौती” बताया।
कोर्ट ने यह फैसला एक शराब तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें पुलिस ने आरोपियों की जाति का ज़िक्र किया था।
एफआईआर में जाति क्यों नहीं?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि अन्य कानूनी तरीकों से की जानी चाहिए। न्यायाधीश दिवाकर ने स्पष्ट किया कि आधुनिक युग में जब हमारे पास पहचान के लिए आधार कार्ड, फिंगरप्रिंट और मोबाइल कैमरे जैसे उपकरण मौजूद हैं, तब भी जाति पर निर्भर रहना अनुचित है।
उन्होंने इस प्रथा को पहचान की प्रोफाइलिंग का रूप बताया, जो समाज में भेदभाव को बढ़ावा देती है।
पुलिस के दस्तावेजों में होगा बड़ा बदलाव
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह पुलिस दस्तावेज़ों में व्यापक बदलाव करे। इसके तहत, आरोपियों, मुखबिरों और गवाहों की जाति से जुड़े सभी कॉलम और प्रविष्टियों को तुरंत हटाया जाएगा। इसके लिए, अपर मुख्य सचिव और डीजीपी को एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने का निर्देश दिया गया है।
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि पुलिस फॉर्म में पिता/पति के नाम के साथ मां का नाम भी जोड़ा जाए, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिले।
कोर्ट ने DGP की कार्यशैली पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक की कार्यशैली पर भी तीखी टिप्पणी की। न्यायाधीश ने कहा कि DGP ने खुद को एक ऐसे पुलिसकर्मी के रूप में चलाया जो संवैधानिक नैतिकता से पूरी तरह अलग है। उन्होंने यह भी कहा कि देश को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए जाति का पूरी तरह से खत्म होना हमारे राष्ट्रीय एजेंडे का एक मुख्य हिस्सा होना चाहिए।
क्या था पूरा मामला?
यह फैसला एक शराब तस्करी के मामले से जुड़ा है। पुलिस ने एक स्कॉर्पियो गाड़ी से 106 बोतल व्हिस्की बरामद की थी और उसमें बैठे तीन आरोपियों को पकड़ा था। पुलिस ने इन आरोपियों की जाति को एफआईआर में “माली”, “पहाड़ी राजपूत” और “ठाकुर” के रूप में दर्ज किया था। इसी तरह एक और कार से पकड़े गए आरोपियों की जाति भी “पंजाबी पाराशर” और “ब्राह्मण” के रूप में दर्ज थी। कोर्ट ने इसी प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
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