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मृत्यु और काल की कहानी सुनाते-सुनाते चले गए यूपी के पूर्व मुख्य सचिव, मंच पर डॉ. शंभुनाथ का निधन

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पुस्तक विमोचन के दौरान यूपी के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. शंभुनाथ का निधन हो गया। हिन्दी संस्थान निराला सभागार में देर शाम कार्यक्रम चल रहा था। कार्यक्रम में मौजूद लोग उन्हें अस्पताल लेकर भागे जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत करार दिया।

यूपी के पूर्व मुख्य सचिव, साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ का शनिवार देर शाम लखनऊ में हिन्दी साहित्य संस्थान के निराला सभागार में चल रहे पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान हृदयगति रुकने से निधन हो गया। मंच पर जिस समय वह वक्तव्य दे रहे थे, तभी वह बेहोश हो गए। अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत करार दिया गया। उनके निधन से साहित्यजगत और नौकरशाहों में शोक की लहर है।

शनिवार शाम को साहित्य संस्थान के निराला सभागार में मनोरमा श्रीवास्तव के उपन्यास ‘व्यथा कौंतेय की’ का विमोचन था। इसमें पूर्व आईएएस, साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ भी मौजूद थे। बतौर वक्ता वह उपन्यास पर अपनी बात रख रहे थे। डॉ. शंभुनाथ कर्ण की मौत पर बोल रहे थे। इसी बीच उनकी जुबान लड़खड़ाई और सामने की मेज पर ही अचेत होकर गिर गए। डॉ. शंभुनाथ को संभाला गया लेकिन वह कुछ नहीं बोले। वहां मौजूद उनकी पत्नी ने एंबुलेंस बुलाई और सिविल अस्पताल ले गईं, यहां इमरजेंसी में ईएमओ ने डॉ. शंभुनाथ को मृत घोषित कर दिया। उनके बेटे अमितांश बेंगलुरु में कार्यरत हैं। सूचना पाकर वे लखनऊ रवाना हो गए।

काल की कहानी सुनाते-सुनाते चले गए डॉ. शंभुनाथ

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त होने के अगले ही दिन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ को एक जुलाई 2007 का उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था। अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान डॉ. शंभुनाथ ने हिन्दी भाषा को ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए कई यादगार फैसले लिए। इसके साथ ही हिन्दी संस्थान के प्रेक्षागृह और सभागार के नाम यशपाल, निराला और प्रेमचन्द के नाम पर उन्होंने ही रखा। दुनिया से विदा होने से पहले डॉ. शंभुनाथ काल पर एक कहानी सुना रहे थे। बता रहे थे कि काल कैसे राजा का पीछा करता है। इसी वक्त उनकी तबीयत बिगड़ गई और दुनिया को अलविदा कह दिया।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की सम्पादक डॉ. अमिता दुबे ने बताया कि डॉ. शंभुनाथ के साथ काम करने से मेरे और संस्थान के अन्य अधिकारियों के व्यक्तित्व में रचनात्मक विकास हुआ। प्रशासनिक सेवा से पूर्व डॉ. शंभुनाथ एक प्राधयापक भी रहे, जो उनके व्यक्तित्व में दिखता था। किसी चीज को सिखाने का उनका तरीका अन्य सभी अधिकारियों से अलग था।

डॉ. दुबे ने बताया कि वे एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ ही एक उत्कृष्ट कवि थे। उनके व्यक्तित्व और साहित्यिक समझ ने मुझे उनके साहित्यिक अवदान पर पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया। मैंने पुस्तक ‘संवेदनशील रचनाकार डॉ. शंभुनाथ’ उनके साहित्यिक अवदान पर लिखी। डॉ. दुबे ने बताया कि अपने कार्यकाल के दौरान ही डॉ. शंभुनाथ ने कविता की चित्रात्मक भाषा पर कार्यशाला कराई। उसमें आर्ट कॉलेज के कलाकारों ने अमीर खुसरो से लेकर अज्ञेय तक की कविताओं पर आधारित कृतियां तैयार कीं, जो आज भी संस्थान की शोभा बढ़ा रही हैं।

– जन्म : दो मार्च 1947, बिहार के छपरा में

– पिता : जागेश्वर राम , सारण के जिला मजिस्ट्रेट थे

– माता : चन्द्रावती, कवियत्री और लेखिका रहीं

– शिक्षा: बीए ऑनर्स (अंग्रेजी साहित्य), एमए ऑनर्स (अंग्रेजी साहित्य)

– पीएचडी: हिन्दी साहित्य

– प्रशासनिक सेवा: 1970 में भारतीय प्राशनिक सेवा के लिए चयनित

– 30 जून 2007 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त

– एक जुलाई 2007 से 30 जून 2009 तक हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष रहे

प्रकाशन

– विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखन, आकाशवाणी और दूरदर्शन से साहित्यक विषयों पर विविध प्रसारण

– राम कथा के नए आयाम, बच्चन की काव्य यात्रा, दिनकर का रचना संसार, उत्तर प्रदेश में स्वाधीनता संग्राम के प्रेरक प्रसंग (आलोचना/शोध) काव्य संग्रह: आकाश मेरे आइने में, राम कथा और नए प्रतिमान, आचार्य श्री का संपादन

– चर्चित रचना: भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित समीक्षा कृति धूपछांही दिनकर

पत्नी हैं चित्रकार

हिन्दी संस्थान में घटना के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रताप सिंह, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ आदि मौजूद थे। डा. अमिता दुबे ने बताया कि डॉ. शंभुनाथ की पत्नी चन्दानाथ भी एक कलाकार हैं। उन्होंने मां सरस्वती की एक पेंटिंग बनाई जो डॉ. शंभुनाथ ने हिन्दी संस्थान को भेंट कर दी। ये कृति आज भी हिन्दी संस्थान में मौजूद है।

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