शादी की पहली रात, जब मैं और मेरे पति एक खास पल के लिए तैयार हो रहे थे, तभी दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई। मेरी बुआ सास की आवाज आई, 'बेटा, बाहर आओ।' मैंने जल्दी से कपड़े पहने और दरवाजा खोला।
सास की सलाह
मेरी सास ने मुस्कुराते हुए कहा, 'देखो बहू, अब तुम्हारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है- हमारे परिवार में नया सदस्य लाना। अरुण तो थोड़ा नासमझ है, तुम्हें ही देखना होगा।'
मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, लेकिन मन में सोचा, 'नासमझ तो नहीं, पर हां, थोड़ा भोला जरूर है।' हमने उस रात की बात को मजाक में लिया और आगे बढ़ गए।
हर दिन का दबाव
शादी के कुछ दिनों बाद से हर सदस्य का एक ही सवाल होता, 'अच्छी खबर कब दे रही हो?' मैं हंसकर टाल देती, लेकिन यह सवाल धीरे-धीरे बोझिल लगने लगा। अरुण इसे हल्के में लेते हुए कहते, 'लोगों को कहने दो, हमारे पास समय है।'
पहली बहस
एक दिन मैंने थक कर अरुण से कहा, 'हमें डॉक्टर से मिलकर बात करनी चाहिए। ये सवाल सुनना मुश्किल हो रहा है।'
अरुण ने कहा, 'अभी क्यों? मैं चाहता हूं कि पहले हम थोड़ा और स्थिर हो जाएं।'
'तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? तुम दिनभर बाहर रहते हो, बातें मुझे सुननी पड़ती हैं!' मैंने गुस्से में कहा।
यह हमारी पहली बहस थी, और उसके बाद घर का माहौल थोड़ा तनावपूर्ण हो गया।
सास का हस्तक्षेप
एक दिन मेरी सास ने मुझे अलग बुलाकर कहा, 'अगर कोई दिक्कत है, तो खुलकर बताओ। हमें डॉक्टर से मिलना चाहिए।'
मैंने कहा, 'मम्मी जी, मैं तो तैयार हूं, पर अरुण को अभी बच्चा नहीं चाहिए।'
इस पर घर में हंगामा मच गया। सास और ससुर ने अरुण को समझाने की कोशिश की। अरुण ने कहा, 'अभी हमारी आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं है कि हम बच्चे की जिम्मेदारी उठा सकें।'
ससुर की सलाह
अरुण और सास की बहस के बीच, ससुर जी ने कहा, 'देखो, बेटा। अरुण की बात गलत नहीं है। आज का समय हमारे समय से अलग है। पहले हमारी जरूरतें सीमित थीं। आज हर चीज महंगी है।'
उन्होंने कहा, 'लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बच्चे की योजना को अनिश्चित काल तक टाला जाए। सही समय पर सही निर्णय लेना जरूरी है।'
सही दिशा की शुरुआत
ससुर जी की बातों ने हमें सोचने पर मजबूर किया। एक साल बाद, जब हमने महसूस किया कि हम आर्थिक और मानसिक रूप से तैयार हैं, तो हमने अपने परिवार को बढ़ाने का निर्णय लिया।
खुशियों का आगमन
दो साल बाद, हमारे घर एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ। उसकी परवरिश में हमने समान रूप से योगदान दिया। सास, ससुर, और पूरे परिवार का सहयोग मिला, और हमारी बेटी ने घर में नई खुशियां भर दीं।
निष्कर्ष
परिवार में बुजुर्गों की समझदारी और मार्गदर्शन रिश्तों को सही दिशा में ले जाते हैं। सच्चे रिश्ते वही हैं, जहां सब एक-दूसरे को समझें और साथ मिलकर जीवन की खुशियां बांटें।
यह कहानी एक संदेश है कि हर निर्णय समझदारी और समय के साथ लेना चाहिए। यही जीवन और रिश्तों की असली मिठास है।
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