भगवान श्री राम को अयोध्या का राज मिलने वाला था, लेकिन माता कैकयी के वरदान के कारण उन्हें 14 वर्षों का वनवास सहना पड़ा। जब उन्होंने वनवास पूरा किया, तब उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया। इस वनवास के दौरान प्रभु ने कई कठिनाइयों का सामना किया।
सीता का हरण और खोज
वनवास के दौरान, प्रभु श्री राम और माता सीता अलग हो गए। रावण, जो साधु के रूप में आया था, ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। छोटे भाई लक्ष्मण के साथ, श्री राम ने माता सीता की खोज की, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिला।
हनुमान जी की सहायता
भगवान श्री राम के भक्त हनुमान जी ने माता सीता का पता लगाया। उन्होंने अकेले समुद्र पार कर लंका पहुंचे और माता सीता को श्री राम की अंगूठी दी। इसके बाद, श्री राम, लक्ष्मण और हनुमान जी ने रावण से युद्ध करने का निर्णय लिया।
वानर सेना की भूमिका
श्री राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ रावण के खिलाफ एक विशाल वानर सेना भी थी। वाल्मीकि रामायण में इस सेना का उल्लेख मिलता है। यह सेना प्रभु राम के साथ युद्ध में शामिल हुई, लेकिन युद्ध के बाद इसका क्या हुआ, इस पर कम चर्चा होती है।
सुग्रीव का राज और वानरों का भविष्य
युद्ध के बाद, सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया गया। किष्किन्धा, जो कर्नाटक में स्थित है, में कई गुफाएं हैं, जहां श्री राम और लक्ष्मण ने समय बिताया था। सुग्रीव के साथ कई वानर योद्धा भी थे, लेकिन उनके भविष्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
वानर सेना का गठन
वानर सेना एक लाख की संख्या में थी, जिसमें किष्किंधा, कोल, भील और अन्य वनवासियों का योगदान था। युद्ध जीतने के बाद, यह सेना अपने-अपने राज्यों में लौट गई।
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