एक राजा प्रतिदिन मंदिर जाता था तो उसे मंदिर के बाहर दो भिखारी बैठे हुए मिलते थे। एक भिखारी भगवान से कहता था कि तूने इस राजा को तो बहुत कुछ दिया। मुझे भी कुछ दे दे। जबकि दूसरा भिखारी राजा से कहता तुझे भगवान ने बहुत कुछ दिया है। मुझे भी कुछ दे दे।
पहले भिखारी ने दूसरे भिखारी से कहा कि तुम को राजा से नहीं भगवान से मांगना चाहिए। भगवान सभी की इच्छाएं पूरी करता है। लेकिन दूसरा भिखारी उसे मूर्ख बोलकर चुप करा देता था। राजा ने 1 दिन विचार किया कि पहला भिखारी तो भगवान से मांगता है। इसीलिए उसे कुछ ना कुछ मिल जाएगा। लेकिन दूसरा विकारी मुझसे मांगता है। इसलिए मुझे उसे कुछ देना चाहिए।
राजा ने एक बड़े बर्तन में खीर भरवा दी और उसमें कुछ सोने के सिक्के भी डाल दिए। राजा ने अपने मंत्री से कहा कि तुम्हें इस खीर को उस भिखारी को दे देना। मंत्री ने मंदिर जाकर वह खीर भिखारी को दे दी। भिखारी खीर पाकर काफी खुश हुआ।
दूसरे भिखारी ने पहले भिखारी से कहा कि देख ले मूर्ख तू भगवान से मांगता है। लेकिन राजा ने मुझे दिया है। भिखारी ने पहले पेट भर कर खीर खाई और बची हुई खीर पहले भिखारी को दे दी और कहा कि ले मूर्ख तू भी खीर खा ले। वह खीर देकर वहां से चला गया।
अगले दिन राजा तेरे मंदिर आया तो उसे पहला भिखारी नहीं दिखाई दिया। दूसरे भिकारी से राजा ने पूछा कि आज पहला भिखारी कहां है। दूसरे भिखारी ने कहा कल आपने जो खीर मेरे लिए भेजी थी मैंने उसमें आधी खीर उसे दे दी थी। लेकिन आज वो नहीं आया। राजा को समझ आ गया कि भगवान ने उसकी सुन ली है और उसको धन मिल गया है।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि हर किसी को भगवान पर विश्वास रखना चाहिए। भगवान हर किसी की मदद करते हैं। वह खुद मदद के लिए नहीं आते बल्कि दूसरों को भेजते हैं।
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