जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को चरमपंथियों ने हमला कर 26 लोगों को मार डाला. मरने वालों में ज़्यादातर पर्यटक थे.
मरने वालों की सूची देखें तो कश्मीर से केरल और गुजरात से असम तक के लोग इसमें शामिल हैं. इस हमले के बाद सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.
अख़बार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ वहाँ मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि लगभग 20 मिनट तक हमला चला. जब तक सुरक्षा बल पहुँचते चरमपंथी वहाँ से भाग चुके थे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ पुणे की रहने वाली आसावरी ने बताया कि जब हमला हुआ तो वो अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के साथ थीं. हमले में उनके पिता और एक रिश्तेदार मारे गए.
क्या जवाबदेही तय होगी?को बताया, "वहाँ हमारी मदद के लिए कोई नहीं था. हमले के बाद वहाँ से निकलने में हमारी मदद उन्हीं खच्चर वालों ने की जो हमें वहाँ लाए थे."
उन्होंने दावा किया कि सुरक्षा बल के लोग घटना स्थल पर हमले के बीस मिनट बाद पहुँचे.
लेफ़्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों (रिटायर) भारतीय सेना के श्रीनगर स्थित 15 कोर के कमांडर रह चुके हैं.
इस संबंध में उन्होंने बताया, "फ़िलहाल मैं कहूँगा कि हाँ, कश्मीर में सिक्योरिटी ग्रिड गतिशील या डायनैमिक तरीक़े से काम करता है. उसकी नियमित तौर पर समीक्षा भी की जाती है. मैंने मीडिया रिपोर्ट में देखा है कि बैसरन घाटी में सुरक्षा बलों की कोई उपस्थिति नहीं थी. ऐसे क्षेत्र में जहाँ पर्यटकों की आवाजाही इतनी ज़्यादा है, वहाँ सुरक्षा बलों की उपस्थिति होनी चाहिए थी."
यशोवर्द्धन आज़ाद रिटायर आईपीएस अधिकारी हैं. इन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो में विशेष निदेशक के रूप में काम किया है और जम्मू-कश्मीर से वाक़िफ़ हैं.
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए उन्होंने बताया, "इस तरह के और इस पैमाने के हमले ख़ासकर पर्यटकों पर, इसकी हमें आशंका ही नहीं थी. हमले के लिए पहलगाम का चयन भी एक रणनीतिक निर्णय था. यह क्षेत्र शांतिपूर्ण रहा है. वहाँ के लोग पर्यटन से इस कदर जुड़े हैं कि वे कभी भी इस तरह की गतिविधियों का समर्थन नहीं करेंगे.''
उन्होंने कहा, ''हमें जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार इन आतंकवादियों के बारे में ख़ुफ़िया इनपुट थे. फिर भी ये आतंकवादी अपने काम को अंजाम दे पाए - यह एक ऐसा पहलू है जिसका सही तरीक़े से विश्लेषण करने और सबक सीखने की आवश्यकता है.''
वे कहते हैं, "हमें यह भी सोचने की ज़रूरत है कि क्या उन चरमपंथियों को किसी तरह का स्थानीय समर्थन प्राप्त था? तो क्या यह इंटेलिजेंस या ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता थी? आप शायद ऐसा कह सकते हैं, लेकिन यह भी याद रखें कि किसी जगह में लाखों सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जा सकता है लेकिन कुछ ख़ामियाँ फिर भी सामने आएंगी."
लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ़ से इस सूरत में कोई जवाबदेही तय की जाएगी?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में जम्मू-कश्मीर में 34 लाख से अधिक पर्यटक गए थे. वहीं, साल 2023 के ख़त्म होते-होते यह आँकड़ा दो करोड़ ग्यारह लाख के पार चला गया था.
जून 2024 तक पर्यटकों का यह आँकड़ा एक करोड़ आठ लाख पार कर चुका था.
जम्मू कश्मीर की जीडीपी में पर्यटन का योगदान 2019-20 में 7.84 फ़ीसदी था, जो 2022-23 में 8.47 फ़ीसदी हो गया. साल 2021 से जम्मू-कश्मीर में टूरिज़्म सेक्टर की सालाना औसतन वृद्धि का दर 15.13 फ़ीसदी रहा है.
फिर पिछले साल हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया.
जैसी बातें भी आने लगीं. यह भी कहा गया कि 'आतंकवाद के इको-सिस्टम को जम्मू-कश्मीर से लगभग ख़त्म कर दिया गया है'.
साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल के मुताबिक़, साल 2012 में जम्मू-कश्मीर में 19 आम नागरिकों की मौत चरमपथी हिंसा में हुई. उसी साल 18 सुरक्षाकर्मी और 84 चरमपंथी मारे गए थे.
बाद में हिंसा भड़की – जैसे साल 2018 जिसमें 86 नागरिक, 95 सुरक्षाकर्मी और 271 चरमपंथी मारे गए.
इसके मुक़ाबले साल 2023 में 12 नागरिकों की मौत हुई. यही नहीं, 33 सुरक्षाकर्मी और 87 चरमपंथी मारे गए.
पिछले साल 2024 में 31 आम नागरिक, 26 सुरक्षाकर्मी और 69 चरमपंथी मारे गए थे.
यानी हिंसा की दर पूरी तरह से कम नहीं हुई थी. तो क्या प्रशासन को बड़ी घोषणाओं से पहले हालात को और नियंत्रित करने की ज़रूरत थी?
अपना नाम न बताने की शर्त पर एक विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में अपनी रणनीति के बारे में दोबारा सोचने की ज़रूरत है.
सेना में डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) रह चुके एक पूर्व जनरल ने (नाम न बताने की शर्त पर) हमसे बात की. उन्होंने बताया कि पहलगाम में हुए हमले के बाद सरकार को पर्यटन के बारे में कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे.
उन्होंने बताया, "पर्यटक हमेशा से एक सॉफ़्ट टारगेट रहे हैं. चूँकि उन पर इस तरह के हमले नहीं हुए थे तो यह समझा जाने लगा कि आगे भी ऐसे हमले नहीं होंगे. हम हर साल अमरनाथ यात्रा करवाते हैं. इसी इलाक़े में करवाते हैं. तो मेरा मानना है कि ठीक उसी तरह सरकार को पर्यटन के बारे में सोचने की ज़रूरत हैं. पर्यटन को अनुमति दें लेकिन एक नियंत्रित तरीके से. लोग केवल उन स्थानों पर जा सकें जिन्हें सुरक्षा बलों ने चेक किया हो.''
जनरल ढिल्लों बताते हैं, "ख़ासतौर से पर्यटकों की संख्या ध्यान में रखते हुए, सुरक्षा बलों के लिए हर व्यक्ति पर बिना कोई असुविधा पहुँचाए निगरानी रखना, वास्तव में कठिन होता है. भारतीय और विदेशी पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोग भी ऐसे स्थानों पर होते हैं. जैसे, पर्यटक गाइड, अस्थायी ढाबा और रेस्तराँ के कर्मचारी, टैक्सी ड्राइवर और घोड़े संभालने वाले. ऐसी भीड़ में 2-3 आतंकवादियों के शामिल हो जाने और बिना पकड़ में आए रहना आसान है."
इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ़्लिक्ट मैनेजमेंट के एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. अजय साहनी ने कहा, ''अस्थायी रूप से ही सही, लेकिन ऐसे क़दम उठाने होंगे. वरना पर्यटकों में डर, जो कि जायज़ भी है,जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को तबाह कर सकता है.''
साल 2019 में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में पर्यटन और अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश को सरकार की तरफ़ से बढ़ावा मिला है.
क्या सरकार का रुख़ इन मामलों में बदलेगा, यह देखना होगा.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को अपने बयान में साफ़ कर दिया कि इस हमले के पीछे जो लोग हैं, उन पर जल्द ही जवाबी कार्रवाई होगी. हालाँकि कार्रवाई किस रूप में और कब होगी, यह साफ़ नहीं है.
जम्मू-कश्मीर में क्या सुरक्षा बलों की तादाद और बढ़ाने से फ़ायदा होगा? क्या भारत को बेहतर इंटेलिजेंस या ख़ुफ़िया जानकारी के लिए और ज़्यादा प्रयास करने होंगे?
यशोवर्द्धन आज़ाद बताते हैं, "मेरी दृष्टि में इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. अब बड़ी संख्या में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक जम्मू-कश्मीर आ रहे हैं. यहाँ 'जी20' जैसी बैठक हुई. इन सबके बाद इस प्रकार भारत पर हमला करना सीधे तौर पर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुक़सान पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया है. ऐसा केवल पाकिस्तान ही सोच सकता है.''
उनके मुताबिक़, "भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए. मेरी उम्मीद है कि हम अपराधियों को जीवित पकड़ सकें. उनकी भूमिका और पाकिस्तान की भूमिका का दस्तावेज़ीकरण करें. उसके बाद भारत जो भी उचित कार्रवाई समझे वो करे. ताकि पाकिस्तान में आतंकवाद के बुनियादी ढाँचे को पूरी तरह से समाप्त किया जा सके."
आज़ाद कहते हैं, "मैंने हमेशा पाकिस्तान के साथ बातचीत का समर्थन किया है. वहीं मैं यह भी सोचता हूँ कि भारत को यह समीक्षा करने का समय आ गया है कि नियंत्रण रेखा जिसे 'लाइन ऑफ़ कंट्रोल' भी कहते हैं, उस पर पाकिस्तान के साथ सीज़फ़ायर जारी रखना अब उचित है या नहीं. मुझे लगता है कि यह सीज़़फ़ायर भारत की अपेक्षा पाकिस्तान को अधिक लाभ पहुँचा रहा है."
हालाँकि पाकिस्तान ने भी भारत पर बिना वजह सीज़फ़ायर उल्लंघन के आरोप लगाए हैं.
पाकिस्तान ने बुधवार को अपने एक बयान में कहा है, "भारत के अवैध तौर से अधिकृत जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में हुए हमले में पर्यटकों की मौत से हमें बहुत दुख है. हम मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं और घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं ."
ने बताया कि पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराना ग़लत होगा.
डॉ. अजय साहनी मानते हैं कि भारत ने जम्मू-कश्मीर में काफ़ी हद तक सफलता हासिल की है. उसे इस काम को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है.
डॉ. साहनी के मुताबिक, "जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ 30 साल से अधिक पुराना है. यदि आप आँकड़ों की तुलना करें तो मुझे लगता है कि यह चरमपंथ अब अपने अंतिम चरण में है. जहाँ तक बात ज़्यादा सुरक्षा कर्मियों को भेजने की है, इस इलाक़े की भौगोलिक स्थिति, जो पहाड़ों और जंगलों से भरी है, उसको देखते हुए आप कितने बल को लगातार तैनात कर सकते हैं?
वे कहते हैं, "मेरी समझ में, भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस पूरे समय में स्थानीय आबादी देश से अलग-थलग महसूस न करे. इसके लिए हमारे राजनेताओं को वास्तव में विभाजनकारी बयानबाज़ी को बंद करना होगा. यदि हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हमारी ख़ुफ़िया प्रणाली बेहतर हो, हमारा पुलिस बल मज़बूत हो और आतंकवादियों को कोई समर्थन न मिले तो भारत को स्थानीय आबादी को अपने पक्ष में लाना होगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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