
यह सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन आरोप हैं कि भारत के कुछ लोग अब सिर्फ़ अपने देश में ही नहीं, बल्कि अमेरिका और कनाडा में रहने वाले लोगों को भी 'डिजिटल अरेस्ट' के जाल में फंसा रहे हैं.
बेंगलुरु पुलिस ने एक कॉल सेंटर पर छापा मारकर 16 लोगों को गिरफ़्तार किया है. ये सभी देश के पांच राज्यों से हैं. इनमें पश्चिम भारत, पूर्व भारत और उत्तर-पूर्व भारत के लोग शामिल हैं.
आरोप है कि अभियुक्त पुराने और जाने-पहचाने तरीके़ से ठगी कर रहे थे. वे झूठा आरोप लगाते थे कि किसी व्यक्ति के नाम से भेजा गया पार्सल नशीले पदार्थ या अवैध सामान के साथ पकड़ा गया है. इसके बाद वे लोगों को डराकर या "सुरक्षा देने" के नाम पर पैसे वसूलते थे.
भारत में ऐसे साइबर अपराधी अक्सर सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या कस्टम्स जैसी एजेंसियों का नाम लेकर लोगों को डराते हैं. लेकिन बेंगलुरु के एक पॉश इलाके़ में सामने आए इस ताज़ा मामले में अभियुक्त अमेरिकी और कनाडाई जांच एजेंसियों का नाम इस्तेमाल कर रहे थे. उनका मक़सद लोगों को डराकर उनसे पैसे निकलवाना था.
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अब तक यह साफ़ नहीं है कि कुल कितना पैसा ठगा गया है. कुछ कर्मचारियों ने पुलिस को बताया कि उन्हें केवल 22 हज़ार रुपये महीने का वेतन मिलता था. इसमें खाना और रहने की सुविधा शामिल थी. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि उन्हें नकद में कमीशन भी दिया जाता था.
बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त सीमांत कुमार सिंह ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, "हमें शक है कि यह गिरोह विदेशों में सक्रिय बड़े नेटवर्क का हिस्सा है, जो वहां के नागरिकों को ठगता है. हमारी जानकारी के अनुसार, ये कर्मचारी यहां से संभावित पीड़ितों की पहचान करते थे, ताकि अमेरिका या कनाडा में बैठे उनके साथी आगे उन्हें ठग सकें."
यह कॉल सेंटर पुलिस स्टेशन से केवल 200 मीटर की दूरी पर एक साल से अधिक समय से चल रहा था. दो मंज़िलों वाला यह दफ़्तर क़रीब दो साल पहले किराए पर लिया गया था.
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गिरफ़्तार लोगों में महाराष्ट्र के आठ, मेघालय के चार और ओडिशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात से एक-एक व्यक्ति शामिल हैं. सभी को कॉल सेंटर चलाने वाली कंपनी साइबिट्स सॉल्यूशन के मालिकों ने दो अलग-अलग इलाक़ों में बने मकानों में ठहराया था.
इन लोगों ने जॉब पोर्टलों पर बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के नाम से डाले गए विज्ञापनों के ज़रिए नौकरी के लिए आवेदन किया था.
उन्हें दफ़्तर में ही ट्रेनिंग दी गई थी. इसके बाद उन्हें कथित तौर पर इंटरनेट कॉल्स के ज़रिए विदेशी नागरिकों से ठगी करने का काम दिया गया.
बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त सीमांत कुमार सिंह का दावा है, "उन्हें कहा गया था कि किसी से बात नहीं करनी है. उन्हें रात की शिफ़्ट में काम करना होता था और फिर वापस उसी आवास में लौटना होता था, जहां उन्हें रखा गया था.
"जब वह दोबारा काम पर आते थे, तो उन्हें दफ़्तर में ही खाना दिया जाता था. उसके बाद दफ़्तर का शटर बंद कर दिया जाता था."
अजीब बात यह थी कि दफ़्तर के बाहर कोई बोर्ड नहीं था. कंपनी के मालिक अभी तक पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आए हैं.
पुलिस को शक है कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे कॉल सेंटर चल रहे होंगे. पुलिस आयुक्त ने कहा, "जांच जारी है."
पुलिस का कहना है कि इनका काम होता था कि इंटरनेट से अजनबी लोगों की जानकारी जुटाएं, उन्हें कॉल करें और कंट्रोल्ड सबस्टेंस एक्ट (मादक पदार्थों की तस्करी), मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट या थेफ्ट बाय डिसेप्शन जैसे झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दें.
आरोप है कि वे खुद को किसी एजेंसी का अधिकारी बताकर कहते थे, "हम आपको गिरफ्तार होने से बचाने में मदद कर सकते हैं."
इसके बदले वे पैसे मांगते थे. पुलिस का कहना है कि निर्दोष पीड़ितों को अमेरिकी अदालतों के नकली गिरफ्तारी आदेश तक दिखाए जाते थे.
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ज़्यादातर कर्मचारी ग्रेजुएट भी नहीं थे पुलिस की तरफ़ से दी गई जानकारी के मुताबिक़, उन्हें कंप्यूटर पर पहले से तैयार स्क्रिप्ट दी गई थी, जिसमें लिखा होता था:
"यूनाइटेड स्टेट्स कस्टम और बॉर्डर प्रोटेक्शन विभाग से बात कर रहे हैं. मैं अधिकारी (एक काल्पनिक नाम) बोल रहा हूं. क्या मैं जान सकता हूं कि मैं किससे बात कर रहा हूं?"
पुलिस ने उन नकली दस्तावेज़ों की तस्वीरें भी ली हैं, जिन्हें ये कर्मचारी पीड़ितों को दिखाते थे.
एक दस्तावेज़ पर लिखा था: "यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, काउंटी हाउस, (काउंटी और स्टेट का नाम)."
दस्तावेज़ पर केस फ़ाइल नंबर और वारंट नंबर ऊपर लिखा होता था. नीचे "गिरफ़्तारी वारंट" लिखा होता था. यह वारंट "डिटेंशन डिप्टी" नाम के काल्पनिक अधिकारी को संबोधित था.
दस्तावेज़ में लिखा होता था: "आपको आदेश दिया जाता है कि (फर्ज़ी नाम वाला व्यक्ति) को बिना किसी देरी के यूनाइटेड स्टेट्स मजिस्ट्रेट न्यायाधीश के सामने पेश करें. इस पर कोर्ट में दाखिल दस्तावेज़ के आधार पर अपराध का आरोप है."
नीचे अपराधों की लिस्ट दी गई थी:
- मादक पदार्थों की तस्करी
- मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट
- धोखे से चोरी
- दिनांक: 18 सितंबर 2025
- अधिकारी का नाम और बैज आईडी
- सिटी और स्टेट, काउंटी का नाम और स्टेट का नाम
आरोप है कि कॉल के दौरान यह "अधिकारी" पीड़ित से पूछता था, "क्या यह पहली बार है जब आपने इस केस के बारे में सुना है?" जब पीड़ित "हां" कहता था, तो अगला सवाल होता था, "क्या आपको किसी पर शक है? क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो ड्रग्स के धंधे में है या किसी ने आपकी पहचान का इस्तेमाल किया है?"
पीड़ितों को "यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट" के नाम से बनाए गए नकली दस्तावेज़ भी दिखाए जाते थे. इन दस्तावेज़ों में उन्हें ड्रग तस्करी का अभियुक्त बताया जाता था.
बीपीओ ऑफिस की दीवारों पर कम से कम छह देशों के समय क्षेत्र दिखाने वाली घड़ियां लगी थीं. वहीं एक छोटे से फ्रेम में एक पोस्टर टंगा था, जिस पर लिखा था, "सोचना बंद करो, काम शुरू करो."
पुलिस की कार्रवाईबेंगलुरु पुलिस आयुक्त ने बताया कि जिस इमारत में यह फर्जी बीपीओ चल रहा था और जिन दो मकानों में कर्मचारियों को रखा गया था, उनके मालिकों पर भी मामला दर्ज किया जा रहा है. इसका कारण यह है कि उन्होंने यह नहीं देखा कि उनके परिसर का इस्तेमाल किस मक़सद से हो रहा है.
पुलिस ने जांच के लिए इस अपराध में इस्तेमाल सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त कर लिए हैं. इनमें 41 कंप्यूटर सिस्टम, 41 मॉनिटर, 40 सीपीयू, 41 माउस, 41 कीबोर्ड, 41 एजीए केबल, 82 पावर केबल, 21 एलएएन केबल, दो अटेंडेंस रजिस्टर, चार नोटबुक, 25 मोबाइल फोन, पहचान पत्र, एक ईपीएबीएक्स डिवाइस, चार डी-लिंक स्विच और चार राउटर शामिल हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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