'डिजिटल रेप' एक गंभीर यौन अपराध है. डिजिटल शब्द की वजह से कई लोगों को लगता है कि यह किसी ऑनलाइन गतिविधि से जुड़ा अपराध है, लेकिन असल में इसका मतलब कुछ और है.
पिछले कुछ सालों में देशभर की अदालतों से ऐसे कई फ़ैसले आए हैं, जिनमें 'डिजिटल रेप' शब्द का इस्तेमाल किया गया है.
बुधवार, 13 अगस्त को उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर के ज़िला न्यायालय ने 'डिजिटल रेप' के एक मामले में दोषी साबित हुए व्यक्ति को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है.
ऐसा ही एक मामला साल 2014 का है, जिसमें ट्यूशन टीचर के रिश्तेदार प्रदीप कुमार पर चार साल की बच्ची के साथ यौन हिंसा का आरोप था.
इस मामले में दिल्ली के साकेत कोर्ट ने अगस्त 2021 में व्यक्ति को दोषी मानते हुए बीस साल की सज़ा सुनाई थी.
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए 'डिजिटल रेप' शब्द का इस्तेमाल किया था.
जस्टिस अमित बंसल का कहना था, "अब मैं सज़ा के पहलू पर बात करूँगा. निचली अदालत ने अपीलकर्ता को बीस साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी, यह देखते हुए कि अपीलकर्ता ने घटना के समय चार साल की बच्ची के साथ 'डिजिटल बलात्कार' किया था."
कोर्ट ने प्रदीप कुमार को दोषी मानते हुए 12 साल की सज़ा सुनाई थी.
'डिजिटल रेप' क्या है?'डिजिटल रेप' में इस्तेमाल होने वाला शब्द डिजिटल, लैटिन भाषा के शब्द 'डिजिटस' से आया है.
'डिजिटस' का मतलब उंगली से है. यह उंगली हाथ या पैर, किसी की भी हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट की वकील और जोतवानी एसोसिएट्स से जुड़ीं दिव्या सिंह का कहना है, "डिजिटल रेप का मतलब वह यौन अपराध है, जिसमें सहमति के बिना उंगली या कोई और वस्तु लड़की या महिला के प्राइवेट पार्ट्स में डाली जाती है."
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जानकारों का मानना है कि यौन अपराध के ऐसे मामलों में, जहां प्राइवेट पार्ट का इस्तेमाल नहीं होता था, वहां सर्वाइवर को न्याय मिलने में मुश्किल आती थी.
अभियुक्त, अक्सर तकनीकी बहानों से बच निकलते थे. साल 2012 के निर्भया केस के बाद यौन अपराधों से जुड़े क़ानूनों में संशोधन किया गया था.
बीबीसी से बातचीत में दिव्या सिंह कहती हैं, "2013 से पहले वजाइना में पेनिस के प्रवेश को ही रेप माना जाता था. वजाइना में उंगली या किसी वस्तु के प्रवेश को रेप से संबंधित धारा 375 की जगह धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करना) या धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत अपराध माना जाता था."
वह कहती हैं, "इन मामलों में रेप की धारा ना लगने की वजह से दोषी व्यक्ति को कम सज़ा होती थी, लेकिन निर्भया केस के बाद क़ानून में बदलाव हुआ. क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 के ज़रिए आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा को बढ़ाया गया."
दिव्या का कहना है, "अब डिजिटस पेनेट्रेशन को भी साफ़ तौर पर रेप माना जाता है और किसी तरह की नरमी नहीं बरती जाती है."
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) के लागू होने के साथ ही आईपीसी की धारा 375 को बीएनएस की धारा 63 से बदल दिया गया है.
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'डिजिटल रेप' बीएनएस की धारा 63बी के तहत गंभीर यौन अपराध है.
बीएनएस की धारा 64 के तहत ऐसे मामलों में सज़ा का प्रावधान है. क़ानून के मुताबिक़, 'डिजिटल रेप' के केस में कम से कम दस साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है.
वहीं, बीएनएस की धारा 65 (2) के तहत 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ रेप के मामले में कम से कम 20 साल की सज़ा का प्रावधान है.
यह सज़ा अधिकतम आजीवन कारावास और मृत्युदंड में भी बदल सकती है. इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
पुलिस की कार्रवाई'डिजिटल रेप' के मामलों में पुलिस को तुरंत मेडिकल एग्ज़ामिनेशन, फॉरेंसिक सैंपल और सर्वाइवर का बयान दर्ज करना होता है.
एडवोकेट दिव्या कहती हैं, "कई बार मेडिकल रिपोर्ट में यह लिख दिया जाता है कि निजी अंगों पर कोई चोट नहीं है, जिससे केस कमज़ोर हो जाता है. लेकिन क़ानून के मुताबिक़ रेप के मामलों में प्राइवेट पार्ट्स में चोट होना ज़रूरी नहीं है."
वह कहती हैं, "समाज में जागरुकता फैलाने की ज़रूरत है कि बिना पेनिस पेनेट्रेशन के भी रेप होता है और क़ानून में भी उतनी ही गंभीर सज़ा का प्रावधान किया गया है."
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सुप्रीम कोर्ट की वकील कामिनी जायसवाल का कहना है कि 'डिजिटल रेप' के मामलों में मानसिक और भावनात्मक आघात अन्य रेप के मामलों जैसा ही होता है.
वह कहती हैं, "कई बार लोग 'डिजिटल रेप' को समझ नहीं पाते, लेकिन क़ानून के मुताबिक़, यह रेप है और बीएनएस की धारा 63 के अंदर ही आता है."
जायसवाल कहती हैं, "स्कूल और कॉलेजों से पहले यौन शिक्षा घरों से शुरू होनी चाहिए. गुड टच, बैड टच जैसे चीज़ें बच्चों को सिखाई जानी चाहिए."
उनका कहना है, "समाज में ऐसे अपराधों को गंभीरता से लेना चाहिए और सर्वाइवर को दोष देना बंद करना चाहिए."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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