कभी-कभी एक वीडियो ही बचा रह जाता है किसी की आख़िरी मुस्कान, आख़िरी आवाज़ बनकर.
छिंदवाड़ा की शिवानी ठाकरे के लिए वो वीडियो उनकी दो साल की बेटी योजिता का है, जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं.
मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला के मुताबिक छिंदवाड़ा, बैतूल और पांढुर्णा ज़िलों में सात सितंबर से लेकर अब तक 20 बच्चों की दूषित कफ़ सिरप पीने से मौत हो चुकी है.
इनमें सबसे ज्यादा छिंदवाड़ा में 17 बच्चों की मौत हुई है. योजिता भी उनमें से एक हैं.
छिंदवाड़ा के कलेक्टर हरेंद्र नारायण कहते हैं कि इस घटना के ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जा रही है.
योजिता की मां शिवानी ठाकरे की आंखें रो-रोकर लाल हो चुकी हैं.
अपनी सिसकियों पर काबू पाकर वो कहती हैं, "बीमार पड़ने से दो शाम पहले ही तो योजिता पूरे घर में चहक रही थी. मैं अकेले संभाल ही नहीं पा रही थी उसे. जब बुखार हुआ तो पास के डॉक्टर ने कफ़ सिरप लिख दी. हमने बस चार खुराक़ दवा दी थी... फिर उसकी हालत बिगड़ती चली गई. हमें क्या पता था कि हम अपनी बेटी को अपने ही हाथों ज़हर पिला रहे हैं."
सदमे में हैं बच्चों के माता-पिता
परासिया ब्लॉक में गली-मोहल्लों और दुकानों पर लोग कफ़ सिरप के बारे में बातें कर रहे हैं. उनमें से कुछ अपने बच्चों के लिए डरे हुए भी हैं.
सोमवार की रात बीबीसी से बात करते हुए छिंदवाड़ा के कलेक्टर हरेंद्र नारायण ने कहा, "हमसे कहीं न कहीं गलती हुई. एक दूषित दवा बाज़ार में आई और 14 मासूम बच्चों की मौत हुई है. इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई शुरू हो चुकी है. साथ ही साथ अब ये कोशिश है कि ऐसी कोई घटना दोबारा न हो".

योजिता के घर से लगभग दो किलोमीटर दूर चार साल के उसैद के घर पर भी सन्नाटा पसरा हुआ है. उसैद की मां घर आने वाले हर व्यक्ति को उसकी तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, "पूरा मोहल्ला ये जानता था कि उसैद अगर घर पर है तो दुआ-सलाम किए बिना कोई सड़क पार नहीं कर सकता था".
उसैद का घर परासिया के मैगज़ीन लाइन में है. घर के बाहर मोहल्ले की पतली सड़क है जिसके किनारे अधिकारियों की गाड़ियां खड़ी हैं.

मुख्यमंत्री मोहन यादव उसैद के घर आने वाले हैं. पूरा सरकारी अमला इस मुलाक़ात की तैयारी में जुटा हुआ है.
सामने मोहल्ले की एक दुकान पर लोग मुख्यमंत्री की मुलाक़ात और कफ़ सिरप से हुई मौतों पर चर्चा कर रहे हैं.
एक बुजुर्ग कहते हैं, "अब मुख्यमंत्री के यहां आने से क्या फ़ायदा? इससे बेहतर तो वो वहां जाएं जहां अफ़सर बैठते हैं और उन पर कार्रवाई करें जिन्होंने ये ज़हरीला कफ़ सिरप बाज़ार में बिकने दिया".
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परासिया में 7 सितंबर से एक-एक कर कई बच्चों की मौत हो रही थी. छह बच्चों की मौत के बाद प्रशासन हरकत में आया और 23 सितंबर को इस तरह हो रही बच्चों की मौत पर अधिकारियों ने जांच शुरू की.
जांच में पता चला कि बच्चों की मौत कफ़ सिरप पीने के बाद किडनी फेल होने से हो रही है. ये सिरप तमिलनाडु के कांचीपुरम ज़िले में श्रीसन फ़ार्मास्युटिकल्स कंपनी बनाती थी. यह सिरप छिंदवाड़ा और आसपास के कस्बों में बिक्री के लिए उपलब्ध था.
तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल विभाग की रिपोर्ट में इस कंपनी के सिरप के एक बैच में 48.6 प्रतिशत डायथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया. यह वही 'ज़हरीला' रसायन है जिससे पहले भी गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और भारत में बच्चों की मौतें हो चुकी हैं.
इस रिपोर्ट के बाद मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल विभाग ने शनिवार 4 अक्तूबर को कफ़ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया था.
साथ ही पुलिस ने सरकारी डॉक्टर प्रवीण सोनी, कफ़ सिरप बनाने वाली कंपनी श्रीसन फ़ार्मास्युटिकल्स के संचालकों और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की और डॉक्टर को गिरफ़्तार कर लिया.
डॉक्टर प्रवीण सोनी परासिया में सरकारी शिशु रोग विशेषज्ञ के तौर पर तैनात थे.
ज़िला कलेक्टर ने बीबीसी को बताया कि इस मामले में डॉक्टर की गिरफ़्तारी के अलावा छिंदवाड़ा के ड्रग इंस्पेक्टर को बर्खास्त कर दिया गया है वहीं प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर को स्थानांतरित कर दिया गया है.

फिलहाल कांचीपुरम ज़िले की श्रीसन फ़ार्मास्यूटिकल्स कंपनी के कारखाने की जांच में तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल विभाग ने 350 से ज़्यादा खामियां उजागर की हैं.
रिपोर्ट में बताया गया कि सिरप गंदगी और बेहद अस्वच्छ माहौल में तैयार की जा रही थी.
वहां के एयर फिल्टर और वेंटिलेशन सिस्टम काम नहीं कर रहे थे, मशीनें जंग लगी थीं और दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाला पानी भी दूषित था.
जांच में यह भी सामने आया कि कंपनी ने बिना किसी वैध बिल या अनुमति के 50 किलो प्रोपिलीन ग्लाइकोल खरीदा था. प्रोपिलीन ग्लाइकॉल दवा निर्माण के मानक (फार्मास्यूटिकल ग्रेड) का नहीं था.
कंपनी ने बिना यह जांचे कि इसमें इथाइलीन ग्लाइकॉल और डाई इथाइलीन ग्लाइकॉल है या नहीं, प्रोपिलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल दवा बनाने में किया.
रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी में कोई क्वालिटी एश्योरेंस विभाग मौजूद नहीं था, न ही दवा की जांच, बैच रिलीज़ या रिकॉल की कोई प्रक्रिया तय थी.
दवा के सैंपल खुले माहौल में लिए जा रहे थे, जिससे दूषण की संभावना बढ़ गई थी.
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परासिया के प्रकाश यदुवंशी पिछले 10 दिनों से अपने बेटे की फाइलें लेकर घूम रहे हैं.
परिवार के अनुसार, उनके 7 साल के बेटे दिव्यांश की मौत भी इसी दूषित कफ़ सिरप पीने और फिर किडनी खराब हो जाने से हुई.
उन्होंने कहा, "हमारे बेटे की मौत 2 सितंबर को हो गई थी. पहले तो हमें पता ही नहीं था कि सिरप के कारण मौत हुई है क्योंकि हमें बताया गया कि किडनी खराब हो गई है. डॉक्टरों को भी उस वक्त नहीं पता था कि सिरप के कारण किडनी खराब हो रही है. वो तो जब 6-7 बच्चों की मौत हो गई तब प्रशासन की नींद खुली. हमने टीवी पर सुना कि सिरप से किडनी खराब हो रही है तो हमने फिर अपने बेटे की दवाइयां देखीं. उसमें भी सिरप लिखा हुआ था. बाकी बच्चों के जैसे ही लक्षण और हालत उसकी भी थी".
प्रकाश यदुवंशी का आरोप है कि सरकार उनके बच्चे की मौत को सिरप से हुई मौत नहीं मान रही है.
उन्होंने कहा, "हम पिछले 10 दिन से सरकारी दफ़्तरों के चक्कर काट रहे हैं. सारे दस्तावेज लेकर जा रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है. मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश की लेकिन अधिकारियों ने मिलने नहीं दिया. मुझे लगता है कि ये लोग आंकड़ा छुपाने की कोशिश कर रहे हैं".
इस मामले पर जिला कलेक्टर ने बीबीसी से कहा, "हमारे पास जो भी सही मामले आएंगे, उन्हें माना जाएगा और हरसंभव मदद मुहैया कराई जाएगी".
बच्चों के इलाज में किसी ने ऑटो बेचा तो किसी ने ज़ेवर, अब परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है.
उसैद के पिता यासीन ख़ान कहते हैं, "उसैद तो मोहल्ले की जान था. जब उसे सिरप दी, तो दो दिन बाद पेशाब आना बंद हो गया. डॉक्टर बोले किडनी फेल हो गई है. हम परासिया से छिंदवाड़ा और वहां से नागपुर भागे, पर उसे बचा नहीं पाए."
यासीन ने इलाज के लिए अपना ऑटो, पत्नी की सिलाई मशीन और जेवर सब बेच दिए.
वहीं, प्रकाश यदुवंशी ने बताया कि उनके बेटे के इलाज में लगभग 7 लाख रुपए लगे. इसके लिए उन्हें अपना एक एकड़ खेत भी गिरवी रखना पड़ा है.
"पैसों का हमने सोचा ही नहीं. घर की सारी जमा पूंजी लगा दी. खेत गिरवी रख दिया. हमारे साथ तो दो बार धोखा हुआ. पहले बच्चे को ज़हरीली दवाई दे दी. और अब सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि उसकी मौत इसी से हुई है. जबकि डॉक्टर कह रहे हैं कि सिरप से ही किडनी खराब हुई है"
उसैद के पिता कहते हैं, "मेरे बेटे को कोई बीमारी नहीं थी. हम तो बीमारी का इलाज करवाने गए थे… उसके लिए तो दवाई ही दुश्मन बन गई. इसमें जो भी ज़िम्मेदार है उसे सज़ा मिलनी चाहिए".
स्थानीय लोगों का कहना है कि बच्चों की मौत के बाद परासिया की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है.
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छिंदवाड़ा जिले का नाम मध्य प्रदेश की राजनीति में बहुत अहम रहा है. इसे कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ माना जाता था.
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ 1980 से 2024 तक 9 बार सांसद रहे हैं.
साल 2024 में भाजपा ने यह सीट जीत ली थी.
परासिया के रहने वाले विजय डहरिया कहते हैं, "राजनीतिक फ़ायदा मिलने के बाद यहां के नेताओं ने कभी छिंदवाड़ा की स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया. यहां सोनोग्राफ़ी और डायलिसिस जैसी ज़रूरी जांच नहीं हो पाती है. यहां कोई स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. अगर तबीयत बिगड़ती है तो यहां से (मरीज़ को) सीधे नागपुर लेकर जाना पड़ता है".
परासिया में प्राइवेट अस्पतालों की भरमार है. परासिया ब्लॉक के 2.8 लाख लोगों के लिए मुख्य सरकारी अस्पताल के नाम पर सिर्फ़ एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है.
ज़िले के एक स्वास्थ्य कर्मचारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के उपकरण स्वीकृत हैं, कई मशीनें यहां रखी गई हैं. लेकिन इन मशीनों के सुगम और सुचारु इस्तेमाल के लिए अस्पताल को ज़्यादा बिजली की ज़रूरत पड़ेगी. लेकिन अस्पताल में बिजली की पर्याप्त खपत के लिए व्यवस्था नहीं की गई है."
उन्होंने बताया, "बड़ी-बड़ी मशीनें ज़्यादा बिजली खाती हैं, ऐसे में यहां एक हैवी ट्रांसफार्मर की ज़रूरत है. यहां एक्सरे मशीन पड़े-पड़े धूल खा रही है क्योंकि उसे चलाने के लिए ट्रांसफार्मर चाहिए जो लगाया नहीं गया है."
परासिया में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के चलते लोगों को नागपुर जाना पड़ता है.
ज़िला कलेक्टर भी इस बात पर सहमति जताते हुए कहते हैं, "यहां पर सीमित संसाधन होने के कारण ज़्यादातर लोग गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए नागपुर जाते हैं."

बीबीसी मराठी संवाददाता भाग्यश्री राऊत के मुताबिक़ छिंदवाड़ा ज़िले के मरीज़ों को नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और दूसरे प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.
नागपुर नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन सभी मरीज़ों की स्थिति पर नज़र रखी जा रही है.
नागपुर नगर निगम के हेल्थ ऑफिसर डॉ. दीपक सेलोकार ने बताया, ''नागपुर में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के कुल 36 मरीज़ भर्ती किए गए. जिनमें से 19 की मौत हो चुकी है. मृतकों में से 13 मध्य प्रदेश के और 6 पूर्वी विदर्भ (महाराष्ट्र) से थे."
इन मामलों में एन्सेफलाइटिस के दो तरह के मामले देखे गए.
महाराष्ट्र के मरीज़ों में केवल साधारण एन्सेफलाइटिस पाया गया, जबकि मध्य प्रदेश के मरीज़ों में एन्सेफलाइटिस के साथ किडनी फेल्योर भी देखा गया.
सेलोकार ने बताया, "सरकारी मेडिकल कॉलेज, नागपुर में भर्ती मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के मरीज़ों की रेनल बायोप्सी कराई गई, जिसमें संकेत मिले कि यह समस्या कफ़ सिरप में मौजूद डायथिलीन ग्लाइकॉल के कारण हो सकती है."
इसके बाद मध्य प्रदेश प्रशासन ने उस कफ़ सिरप की जांच कराई और उसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल का अत्यधिक स्तर पाया गया. ये दूषित सिरप कुछ भर्ती मरीज़ों के पास भी पाया गया.
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परासिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले दो दिनों से लंबी कतारें लगने लगी हैं. कई मांएं अपनी गोद में बच्चों को लिए बेंच पर बैठी हैं.
अपने 11 महीने के बच्चे को दवाई पिलाती कृष्णा डहरिया ने कहा, "डर तो लगने लगा है सर… लेकिन क्या करें… बच्चों का मामला है. अब हम सरकारी अस्पताल आ रहे हैं क्योंकि बाहर या प्राइवेट में बच्चों को दिखाने में हम भी डर रहे हैं और डॉक्टर भी बच्चों का इलाज करने से कतरा रहे हैं."
एक अन्य परिजन कहते हैं, "हम तो अस्पताल ही जाना बंद कर देंगे. छोटी-छोटी बीमारियों जैसे सर्दी खांसी के लिए डॉक्टर बहुत सारी दवाइयां लिख देते हैं. छोटे बच्चों का शरीर आखिर कितनी दवाइयों को पचा पाएगा?"
परासिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इस घटना के बाद मरीजों की संख्या बढ़ गई है. इनमें से ज़्यादातर छोटे बच्चे हैं जो सर्दी-खांसी और बुखार से पीड़ित हैं.
यहां प्राइवेट अस्पतालों में ज़्यादातर डॉक्टर बच्चों का इलाज करने से बच रहे हैं.
प्राइवेट क्लिनिक चलाने वाले एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "ज़्यादातर डॉक्टर प्राइवेट क्लिनिक में बच्चों को नहीं देख रहे हैं. इस घटना के बाद डॉक्टर और मरीज़ के बीच विश्वास भी कम हुआ है."
परासिया में स्वास्थ्य व्यवस्था में कमी पर उन्होंने कहा, " परासिया छोटी जगह है इसलिए प्रदेश के कई इलाकों की तरह यहां भी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. अगर ये घटना न होती तो यहां स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था पर कोई बात नहीं करता, बल्कि जो जैसा है वैसा ही चलता रहता. यहां कोई बड़ा अस्पताल नहीं है, सरकारी डॉक्टर धड़ल्ले से प्राइवेट क्लिनिक चलाते हैं, मनमर्जी दवाइयां लिखते हैं कौन ज़िम्मेदारी लेगा?".
(छिंदवाड़ा से स्थानीय पत्रकार अंशुल जैन के इनपुट के साथ)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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