Next Story
Newszop

गांव से लेकर शहर तक अटके निकाय चुनाव: कानूनी उलझन के कारण टल रही घोषणा, RTI से सामने आई सच्चाई

Send Push

राजस्थान में पंचायत राज और नगरीय निकाय चुनावों को लेकर चल रही अनिश्चितता ने एक नया मोड़ ले लिया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम शुरू कर दिया है, वहीं राजस्थान उच्च न्यायालय की युगलपीठ ने एकलपीठ के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है जिसमें सरकार को जल्द से जल्द चुनाव कराने और ग्राम पंचायतों में नियुक्त प्रशासकों को हटाने का निर्देश दिया गया था। इस बीच, आयोग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवालों का जवाब देने में असमर्थता जताई है, जिससे जनता और राजनीतिक दलों में असंतोष बढ़ रहा है।

1. जिन ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों, जिला परिषदों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों का पाँच साल का कार्यकाल समाप्त हो गया है, उनके चुनाव कब होंगे?
2. संविधान के अनुच्छेद 243 (ई) और (यू) का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आयोग ने क्या कदम उठाए हैं?
3. जिन निकायों का कार्यकाल समाप्त हो गया है, उनके चुनावों के संबंध में आयोग का क्या निर्णय है?
4. कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद चुनाव न कराने का क्या कारण है?

इन सवालों के जवाब में आयोग ने सामान्य और अस्पष्ट जवाब दिया है। चुनाव आयोग ने बताया कि पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के लिए मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का कार्यक्रम जारी कर दिया गया है। चुनाव प्रक्रिया जारी है।" आयोग ने यह भी कहा कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण का विस्तृत आदेश उसकी आधिकारिक वेबसाइट (https://sec.rajasthan.gov.in/) पर 22 अगस्त, 2025 को उपलब्ध है।

इस जवाब में न केवल प्रश्नों का उत्तर दिया गया, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया कि आयोग ने अभी तक चुनाव तिथियों के संबंध में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। जनता और राजनीतिक दलों ने कहा कि यह आयोग की लचर कार्यप्रणाली का एक और प्रमाण है।

हार के डर से चुनाव नहीं - संदीप कलवानिया
कांग्रेस प्रवक्ता और अधिवक्ता संदीप कलवानिया ने कहा कि नगरीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं का पाँच वर्ष का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन सरकार परिसीमन और पुनर्गठन के नाम पर चुनाव टाल रही है। संविधान के अनुच्छेद 243 (ई) (यू) के अनुसार पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनाव कराए जाने आवश्यक हैं। भाजपा सत्ता में आने पर जनता से किए अपने वादों को पूरा करने में विफल रही है, इसलिए हार के डर से चुनाव नहीं करा रही है।

उच्च न्यायालय का निर्णय - एकल पीठ बनाम दोहरी पीठ
इससे पहले, अगस्त 18 फरवरी 2025 को, न्यायमूर्ति अनूप ढांढ की अध्यक्षता वाली राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। इस आदेश में राज्य सरकार को पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव यथाशीघ्र कराने और ग्राम पंचायतों में नियुक्त प्रशासकों को हटाने का निर्देश दिया गया। इस निर्णय ने सरकार और आयोग पर दबाव बढ़ा दिया, जिससे लंबे समय से लंबित चुनाव जल्द होने की उम्मीद जगी।

हालाँकि, राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ डबल बेंच में अपील की। सरकार की दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति संजीत पुरोहित की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद और अतिरिक्त महाधिवक्ता कपिल प्रकाश माथुर ने तर्क दिया कि सिंगल बेंच का आदेश अनुचित है क्योंकि एक अन्य डबल बेंच पहले ही पंचायत चुनाव और परिसीमन से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर चुकी है, जिसका निर्णय सुरक्षित रखा गया है।

सरकार ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाओं में केवल प्रशासकों के निलंबन और बर्खास्तगी को चुनौती दी गई थी, और जल्द चुनाव कराने की मांग नहीं की गई थी। डबल बेंच ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। दलीलों को स्वीकार करते हुए, सिंगल बेंच के आदेश पर रोक लगा दी गई, चुनाव प्रक्रिया में और देरी की संभावना।

मतदाता सूची और परिसीमन की चुनौतियाँ
राज्य चुनाव आयोग ने 22 अगस्त, 2025 को पुराने परिसीमन के आधार पर मतदाता सूची तैयार करने का कार्यक्रम जारी किया था। इस कार्यक्रम के अनुसार, 26 सितंबर, 2025 तक मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित किया जाना था, जबकि अंतिम सूची 29 अक्टूबर, 2025 तक तैयार की जानी थी। हालाँकि, डबल बेंच के अंतरिम आदेश ने इस प्रक्रिया पर अनिश्चितता के बादल छा दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नए परिसीमन के आधार पर पंचायतें और स्थानीय निकाय पहले ही अस्तित्व में आ चुके हैं, और अदालत के आदेश के बाद आयोग को अपने कार्यक्रम में संशोधन करना पड़ सकता है। इसके अलावा, चुनाव आयुक्त मधुकर गुप्ता का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है। राजेश्वर सिंह को नया आयुक्त नियुक्त किया गया है।

जन असंतोष और राजनीतिक उथल-पुथल
चुनावों में देरी से जनता में असंतोष बढ़ रहा है। ग्राम पंचायतें और नगरीय निकाय प्रशासकों के माध्यम से काम कर रहे हैं, लेकिन जनता का मानना है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के बिना लोकतंत्र की भावना कमजोर हो रही है। इस बीच, राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे का फ़ायदा उठाने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस पार्टी ने सरकार और आयोग की निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा अपने "एक राज्य, एक चुनाव" एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

Loving Newspoint? Download the app now