भरतपुर जिले में सहकारिता विभाग की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है। भरतपुर दूध उत्पादक सहकारी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) डॉ. राजेश नारायण जाट पर लगे अवैध रूप से दूध बेचने के आरोप सही पाए गए हैं। जांच में सामने आया है कि एमडी ने बिना अनुमति के व्हाइट गंगा फ्रूट प्राइवेट लिमिटेड को करीब 9590 लीटर दूध अवैध तरीके से बेचा था।
यह खुलासा सहकारी समिति भरतपुर के निरीक्षक और जांच अधिकारी पवन कुमार की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, दूध की बिक्री की प्रक्रिया न तो पारदर्शी थी और न ही सहकारी समिति के नियमों के अनुसार की गई। समिति के रिकॉर्ड और बिलिंग दस्तावेजों की जांच के बाद यह पाया गया कि दूध की सप्लाई बिना किसी अधिकृत आदेश या अनुबंध के की गई थी।
जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दूध की बिक्री से प्राप्त राशि का कोई स्पष्ट लेखा-जोखा या दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया। इस आधार पर माना गया कि यह लेन-देन अवैध था और संस्था के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है।
सूत्रों के अनुसार, विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित दस्तावेज और रिपोर्ट को सहकारिता रजिस्ट्रार कार्यालय को भेज दिया है। संभव है कि आने वाले दिनों में एमडी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई या निलंबन की प्रक्रिया शुरू की जाए।
भरतपुर दुग्ध संघ के कुछ सदस्यों ने भी इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि सहकारी संस्था किसानों और दूध उत्पादकों के हित के लिए बनाई गई है, लेकिन यदि अधिकारी इस तरह की अनियमितताओं में लिप्त पाए जाते हैं, तो इससे संस्था की साख को गहरा नुकसान होता है।
जांच अधिकारी पवन कुमार ने बताया कि रिपोर्ट में दूध बिक्री से संबंधित सभी रिकॉर्ड, तिथि और मात्रा का उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि “9590 लीटर दूध की सप्लाई व्हाइट गंगा फ्रूट प्राइवेट लिमिटेड को बिना किसी वैध अनुबंध या स्वीकृति के की गई थी, जो सहकारी अधिनियम के नियमों का उल्लंघन है।”
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि अब विभाग उच्च अधिकारियों के निर्देशानुसार आगे की कार्रवाई करेगा। यदि वित्तीय अनियमितता सिद्ध होती है, तो आरोपी अधिकारी के खिलाफ वित्तीय वसूली और दंडात्मक कार्रवाई की भी सिफारिश की जा सकती है।
इस पूरे मामले ने जिले में सहकारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय दुग्ध उत्पादकों का कहना है कि सरकार को इन संस्थाओं की नियमित ऑडिट और पारदर्शिता व्यवस्था को और मजबूत करना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह के घोटाले न हो सकें।
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