कोटा के गणेश पाल मंदिर का इतिहास लगभग 800-900 साल पुराना बताया जाता है। यह मंदिर कोटा शहर बसने से भी पहले का है। कोटा से पहले यहाँ नांथा गाँव बसा था और उसी समय मंदिर की स्थापना हुई थी। यह तालाब के किनारे बना था, इसलिए इसे गणेश पाल मंदिर कहा जाता है। यहाँ मंदिर में विराजमान भगवान गणेश को मनोकामना सिद्ध गणेश कहा जाता है। मूर्ति की सूंड से जुड़ी एक खास बात भी है। पुजारी सुरेंद्र कुमार ने बताया कि यह मंदिर 800-900 साल पुराना है। इसका नाम मनोकामना पूर्ण सिद्ध गणेश मंदिर है। इस मूर्ति की खास बात यह है कि इसकी सूंड सिद्धि की ओर है, जो बहुत कम देखने को मिलती है। यहाँ मानव मुख वाले हनुमान की एक मूर्ति है, जो अपने आप में अलग है। इसके अलावा यहाँ एक शिवलिंग भी है, जिस पर प्राकृतिक तिलक है।
इन चीजों की होती है मनोकामना पूरी
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। लोग यहाँ ज़्यादातर शादी, घर, नौकरी, संपत्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके लिए पाँच बुधवार आना होता है। हज़ारों लोग ऐसे हैं जिनकी मनोकामनाएँ पाँच बुधवार से पहले पूरी हो चुकी हैं। परिवार की 16वीं पीढ़ी मंदिर की सेवा में लगी हुई है। पुजारी सुरेंद्र कुमार ने बताया कि पहले लोग अपनी शादी, नौकरी, मकान, संपत्ति के मामलों के निपटारे के लिए हर बुधवार भगवान गणेश से अर्जी लगाते थे। अर्जी के साथ ही यहाँ रखी प्राचीन जाली पर धागा भी बाँधते थे। जब मनोकामना पूरी हो जाती थी, तो आकर बताते थे।
पहले अर्जी लगाते थे, अब रजिस्टर में लिखते हैं मनोकामना
अब मंदिर में पिछले 25 सालों से ऐसी व्यवस्था हो गई है कि यहाँ शादी, नौकरी, मकान आदि के लिए अलग-अलग रजिस्टर रखे जाते हैं। इसमें शादी करने वाले लोग अपना बायोडाटा लिखते हैं जबकि दूसरे लोग अपनी मनोकामनाएँ लिखते हैं। शादी के बाद भक्त जोड़े के साथ आते हैं और पूजा करते हैं। हर साल देश भर से 5 हज़ार से ज़्यादा लोग शादी की कामना लेकर आते हैं। उन्हें मनोकामना के साथ तेल के गणेश भी दिए जाते हैं। वे बाद में आकर उन्हें वापस कर देते हैं।
बूंदी के राजा ने कोटिया भील से युद्ध करने से पहले किया था अनुष्ठान
पुजारी ने बताया कि लगभग 700 साल पहले जब बूंदी के राजा कोटिया भील से युद्ध करने आए थे, तो उन्होंने 151 पंडितों के साथ इसी स्थान पर अनुष्ठान किया था। कहा जाता है कि गणेश जी ने समर सिंह के सामने प्रकट होकर कहा था कि कोटिया भील को हराने के लिए पहले उन्हें दाढ़ देवी के दर्शन करने होंगे क्योंकि कोटिया भील उनकी भक्त हैं। इसके बाद उन्होंने वैसा ही किया और वे विजयी हुए।
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